Thursday, July 29, 2010

फर्क

हर कोई पाता राहों में
बिखरे पड़े कुछ पत्थर
फर्क बस इतना है
कोई चुनता दीवारें,
और कोई बनाता पुल !!!

मंजिल सबकी अव्वल बिंदु
सबको है पगडण्डी पर चलना
फर्क बस इतना है
कोई सरपट दौड़े जाता
और कोई कहता,
'राह में कांटे बहुत हैं' !!!


दरिया से घिरे हैं सब
पार कर सबको है जाना
फर्क बस इतना है
कोई नहाने के बहाने खोजता है,
और कोई डूबने के !!!

दिवाली हर घर में आती
दीये हैं सबको जलाना
फर्क बस इतना है
कोई तेल जलाता है,
और कोई दिल !!!

हर शाम जल उठते है चराग
कहीं कम कहीं ज्यादा
फर्क बस इतना है
कोई उजाले चुरा लेता है
और कोई कहता-
'लौ कम है' !!!

अवसर देता दस्तक सबको
खट खट, खट खट
फर्क बस इतना है
कोई पहचान लेता है
और कोई कहता-
'बाद में आना' !!!

Monday, July 26, 2010

सपना टूट जाता है

रात के अंधेरों में
तारों की जगमगाहट के बीच
जब चांदनी शिखर पर होती है
चाँद अंगडाई लेता है.

तब तुम आती हो
कुछ लहराते हुए, कुछ इठलाते हुए
कुछ बल खाते हुए, कुछ शर्माते हुए.

तेरे गेसुओं के बादल  
होठों की मुस्कराहट
काजल की श्याही
गजरे की महक
रिझाती है मुझे.

मैं मुस्कुराता हूं
भाग्य पर इठलाता हूं
बेताब हो तुम्हे
छूने की कोशिश करता हूं
पर,
सपना फिर टूट जाता है......!!!!!!!!!! 

Wednesday, July 21, 2010

जीत

an effort to feel something in the way of children.....!!!

३० जून, गर्मी की छुट्टियों का आखरी दिन. क्युटू और लल्ला दोनों अपनी छत पर खड़े हुए हैं. क्युटू होगी कोई ७ साल की और लल्ला करीब ९ साल का. दोनों आज जमकर खेल लेना चाहे है जैसे आज के बाद उनकी कभी छुट्टी होगी ही नहीं. बात बात में खिल खिलाकर हसना, ताली बजाना, उछालना आदि आदि. बीच बीच में मम्मी देखो, मम्मी देखो ना की आवाजें भी आ जातीं.

गड़ गड़ गड़ गड़ गड़. आवाज़ सुनकर अचानक लल्ला डर गया. फिर संभलकर मुस्कुराया और बोला- क्युटू! तुझे पता है ये किसकी आवाज़ है??

तुझसे ज्यादा पता है, तेज़ तर्रार क्युटू ने जवाब दिया.

तो बताओ क्या पता है?

बादल गरज रहे हैं, उल्लू!!

बादल क्यों गरजते हैं??

अरे तुझे नहीं पता? जब कोई खेलते वक्त चीटिंग करता है ना भगवान् जी उसको बहुत सारे मुक्के मार्ते है, इसलिए वो आवाज़ बादल गरजने जैसी होती है उल्लू!!

अरे तो छिपकली ये भी बता दे फिर बरसात  कैसे होती है?

तू उल्लू ही रहेगा. जब भगवान् जी किसी को मारेंगे तो वो रोयेगा नहीं क्या!! भगवान् जब किसी को ज्यादा मारता है ना तो ज्यादा आंसू निकलते है और वो हमें बरसात दिखती है....

छिपकली तू फैंकती बहुत है पता तो कुछ है नहीं. ए ए ए ए ए  (मुंह बनाकर चिढ़ता है)

इ इ इ इ इ इ ....(क्युटू भी चिढाती है)
फिर बादल गरजते है. पानी बरसना शुरू हो जाता है. दोनों नटखट बच्चे एक तरफ छिपकर बरसात को देखने लगते हैं. क्युटू को भीगने का बहुत शौक है. बोलती है-

अरे लल्ला! चल चल भीगते है. मज़ा.. आएगा...
नहीं, मम्मी डांटेगी....
अरे नहीं डांटेगी यार, तू डरता क्यों है मैं हु ना बिजली!!!
तू रहने दे. तू ही भीग ले. मैं नहीं भीगता बरसात के पानी में.
तू उल्ल्लू ही रहेगा. इ इ इ इ इ ..चिढाकर क्युटू अकेली ही भीगने लगती है. आपने दोनों हाथ और मुह आसमान में उठाकर धीरे धीरे मयूरी की तरह गोल गोल घुमने लगती है. बारिश की रिम्झिम रिमझिम बूंदें  उसके मुख पर गिर रही हैं.  नन्हे नन्हे उलझे केश मानो नन्ही घटा उतर आई हो.  श्वेत मुख भीगने के बाद मनो बर्फ की चादर ओढ़े हो...और ऊपर से कोयल की सी मीठी आवाज़ में ताली बजाकर हँसना, मानो सावन नृत्य कर रहा हो और कोयल गुनगुना रही हो....

लल्ला उसे इतराते हुए देखकर चिढ जाता है. पास ही पड़ी किताब का एक पन्ना फाड़कर कुछ बनाने लगता है. क्युटू को दिखाकर कहता है-

छिपकली! तू भीगती ही रहना. पर जब बाढ़ आएगी ना तो मैं तुझे मेरी नाव में नहीं बैठाऊंगा...

तो उल्लू तू भी भीगले.... फिर हम दोनों मिलकर बड़ी नाव बनायेंगे....

नहीं. मैं अकेला ही नाव बनाऊंगा और तुझे बिठाऊंगा भी नहीं...

क्यों नहीं बिठाएगा??? मैं तेरी बहन नहीं हूं क्या..!!!

जब  नाव चलेगी ना तब नहीं रहोगी.. फिर वापस बन जाना.......
ठीक है...(क्युटू का चेहरा गुस्से से लाल हो जाता है) अगर तू नहीं बिठाएगा तो हम तेरी नाव तोड़ देंगे....

कैसे तोड़ देगी??? तोड़ कर दिखा!!! कहकर लल्ला जोर से हंसता है....हा हा हा हा हा.....

क्युटू के दिमाग में मानो बिजली गिरी हो.  वो पूरी ताकत लगाकर तैरती हुई नाव को लात मारती है. लल्ला की नाव पानी में डूब जाती है. लल्ला रोने लगता है. मानो वह नाव उसने कड़ी मेहनत से बनाई थी. जैसे वह सच में उसमे बैठकर बाढ़ से बच जाता. वह खुले आसमान में खडा होकर चुप चाप रोने लगता है.उसकी आँखे बरसात का पूरा साथ दे रही हैं...ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं..........

क्युटू  उसे एकटक देखे जा रही है. मनाने के लिए लल्ला का हाथ पकड़कर धीरे से खिंचती है...लेकिन लल्ला अभी भी रोने का मज़ा ले रहा है...सॉरी......!!! कहकर क्युटू खुद भी रोने लग जाती है......

रोते रोते दोनों अचानक सड़क पर बहता पानी एक दूसरे  के ऊपर फेंकने लगते हैं. फिर दोनों हंस  पड़ते  हैं अपने अपने अंदाज़ में......
हे  हे  हे  हे  हे  हे ............
हा हा हा हा हा............

और दोनों ने शुरू किया फिर से भीगना, उछलना ....बरसात की पुरवाई में सावन की अंगडाई  में.  पानी गुन गुना रहा था...छप छप छप छप....खिड़की से सब कुछ देख रहे उनके मम्मी पापा मुस्कुरा देते हैं मानो उनका सावन जीत गया हो..........

धन्यवाद्