Monday, November 29, 2010

कुछ लिखना, बदलियाँ, मासूमियत, कोई अनकहा अध्याय, असली पन्ना, प्यार जताना, मेरे जज़्बात, होठों के निशाँ

dedicated to my special someone Q.........

१. कुछ लिखना

तू चाहती थी कि
मैं लिखूं तुझ पर कुछ
पर पाता हूं खुद को असमर्थ
कि तुम
जो खुद एक किताब हो
उसके पन्ने पलटते पलटते
खुद मैं खो जाता हूं
पर हाँ, इतना लिखना काफी है
कि मेरी ज़िन्दगी की किताब के
मुखपृष्ठ पर छपी तेरी आँखें
डूबने के लिए काफी हैं!!!

२. बदलियाँ

बेशक सूख चुकी हैं
मेरी आँखे
लेकिन देखकर
कल की तेरी भीगी आँखें
और आज कि तेरी याद से
बरस पड़ी मेरी आँखों से
बदलियाँ!!!


३. मासूमियत

कल देखी थी तेरे
चेहरे की मासूमियत
अब अगर मेरी ऑंखें
देखने में धोखा खा जाये
तो भी
मुझे मंज़ूर है!!!

४. उसूल

कुछ तो हम नादाँ थे
कुछ कुसूर था तेरी मासूमियत का
वक्त यूँही गुज़रता गया
हम उसूल निभाते रहे.!!!

५. कोई अनकहा अध्याय

तेरी कलम को मैंने
कहीं छुपा कर रख दिया है
डरता हूं कहीं
ये फिर से ना लिख दे
कोई अनकहा अध्याय!!!

६. असली पन्ना

हवा के झोंखे पलटते रहते हैं
मेरी ज़िन्दगी के पन्ने
मैं हमेशा कि तरह उधेड़बुन में
उलझा रह जाता हूं
और हर बार
पढने से छूट जाता है
ज़िन्दगी का एक
असली पन्ना!!!

७. प्यार जताना

तुने मुझे सिखाया है
बोलना, सोचना
महसूस करना
अब प्यार करना और
जताना भी सिखा दे!!!

८. मेरे जज़्बात

कल तुने कहा था-
मैं उतना परिपक्व हूँ नहीं
जितना समझता हूं
तुने सही कहा है
शायद इसीलिए
हर बार क़त्ल हो जाते हैं
मेरे जज़्बात
मेरे ही हाथों!!!

९. होठों के निशाँ

तू जाते जाते
छोड़ गई थी गिलास पर
अपने होठों के निशाँ
मैं भी पी गया था फिर
उसी गिलास से पानी
अब किसी और से पीना
फीका फीका सा लगता है!!!

Tuesday, November 23, 2010

हाँ, ठीक है!

प्रेमिका खाती कितने भाव
चाल-चाल में बात-बात में
नयन नखरे अठारह करती
प्रेमी बेचारा फिर भी बोले
हाँ, ठीक है!

प्रेमिका देती नाना नाम
उल्लू, नीबू, फटीचर
करेला, घोंचू, घनचक्कर
प्रेमी बेचारा फिर भी बोले
हाँ, ठीक है!

जब प्रेमिका सामने होती
प्रेमी की जुबाँ गायब रहती
कुछ ना बोले बस सुनता जाये
प्रेमिका जोर जोर से चिल्लाये
प्रेमी बेचारा फिर भी बोले
हाँ, ठीक है!

प्रेमी की बात एक ना माने
महारानी सा ऑर्डर मारे
प्रेमी कभी चैन से सोले
प्रेमिका भड़के बोले,
स्टैंड - अप!
प्रेमी बेचारा फिर भी बोले
हाँ, ठीक है!

पर प्रेमिका का इन्साफ तो देखो
अपने दिल और दिमाग को खोलो
कभी अगर तुमने आंख दिखाई
बोले, रिश्ता तोड़ो!
प्रेमिका झट बोल पड़ेगी
हाँ, ठीक है!!!

Friday, November 19, 2010

दायरा

दुनिया मै आने के साथ ही
मुझे आवश्यकता थी
ज्ञान की
कि दी जा सके
सही मायनों में शिक्षा
आँख और कान खुलने के साथ ही
दिलवाया गया प्रवेश
स्कूल और कॉलेज में.

ताकि बढ़ सके दायरा
सही और सार्थक दिशा में
मेरी सोच और अभिलाषाओं का
ज्ञान पाकर कुछ दे सकूँ
पुनः इस संसार को
समझूँ सामाजिक सरोकारों को.

परन्तु ज्ञान के साथ साथ मिले
भांति भांति के लोग
मेरी अभिलाषाएं
अवांछित इच्छाओं में बदल गईं
विमुख हो गई दिशा
नहीं रही व्यावहारिकता.

जीवन चलाने के लिए
जरुरी थी एक नौकरी
वो मिली भी
परन्तु मैंने भुला दिए
शिक्षा के सही मायने
संसार के प्रति अपने दायित्व.

अब बस उड़ता हूं
मिथ्या कल्पनाओं में
सपनो में देखता हूं
एक बड़ा सा महल
बड़ा ही बैंक बैलेंस
और एक खुबसूरत स्त्री का साथ

बस यही रह गया है
मेरी शिक्षा और सोच का
दायरा!