Sunday, January 30, 2011

बिल्ली चली हज़ पे...

(इस बार कुछ बच्चों के अंदाज़ में सोचने का प्रयास करते हैं....पेश है एक बहुत छोटी सी कहानी, जो आधारित है एक बहुत पुरानी कहावत पर-'सो चूहे खाकर बिल्ली हज पे चली').........

दिवाली की शाम. बिल्ली भूखी प्यासी एक पेड़ के नीचे कोने में बैठी थी. बैठी बैठी बड़ बड़ा रही थी - ये इंसान भी कितने बुरे होते हैं! खुद तो मीठे मीठे व्यंजन खा रहे हैं और हमें पूछते भी नहीं... कमबख्त सुबह से एक चूहा भी नहीं मिला. खाना तो दूर, नाश्ता तक नहीं हुआ आज.

उसने शरीफ जैसा मुह बनाकर एक सीधे साधे चूहे को अपने पास बुलाया. प्यार से उसके सर को सहलाते हुए बोली-और!!! चूहे भैया, कैसे हो???

ठीक हूं.., चूहे ने जवाब दिया.

पर तुम कैसी हो मौसी? उसने पूछा.

ठीक हूं भैया........(सांस छोड़ते हुए बिल्ली बोली). पर अब तुमसे क्या छुपाऊं.....!! ये तुम्हारी मौसी पाप कर कर के बहुत थक गई है. चूहे मारकर अब और पाप की भागी नहीं बनना चाहती. सोच रही हूं हज की यात्रा कर आऊं तो सारे पाप धुल जायेंगे. फिर बस शाकाहारी भोजन ही करुँगी. बस एक छोटी सी समस्या है.....(कहते हुए बिली ने धीरे से चिंता की मुद्रा में मुंह लटका लिया).

बोलो मौसी!! हम हैं ना, तुम्हे चिंता करने की क्या जरुरत है??? (चूहा मन ही मन मुस्कुराते हुए बोला).

अरे भैया....... मेरी सारी जमा पूँजी अभी पिछले दिनों ही चोरी हो गई, जाऊं तो कैसे जाऊं??????

तो चिंता क्यों करती हो मौसी???? बस दो दिन दो, हम सब इन्तज़ाम कर देंगे....

ठीक है भैया, चल अब जा, आराम कर....वरना मुझ बुढ़िया के पास तेरा मन भी नहीं लगेगा....

चूहा ख़ुशी से उछलता, उचकता, फुदकता हुआ भागता है....अरे मोटे वाले...!  अरे पतले वाले...! अरे लम्बी पूँछ वाले...! अरे खाऊ...! सब के सब कहाँ हो?? एक मस्त खबर लेकर आया हूं यार.... सारे के सारे चूहे इकट्ठे हो गए. शोर मचाने लगे.....क्या हुआ??? क्या हुआ????

अरे तुम्हे पता है???? बिल्ली मौसी हज पे जा रही है. अब हम सब मस्त रहेंगे और रोज़ खुले आम डांस करेंगे....हमें खाने का खतरा भी ख़त्म हो जाएगा. सारे चूहे ख़ुशी से झूम उठते हैं.....ईई यीईईईए य़ायायाया!!!!!........पर यार बेचारी के साथ एक समस्या है..उसका पर्स अभी चोरी हो गया. उसके पास रुपये नहीं बचे.

क्यों ना हम सब मिलकर चन्दा इकठ्ठा करके बिल्ली मौसी को दे दें, लम्बी पूछ वाले ने सुझाव दिया.

सभी चूहों ने पूँछ हिलाकर बात से सहमति जताई. साथ में यह भी निश्चय हुआ की मौसी की विदाई डांस और गीतों के साथ की जाए.

कुल मिलाकर आठ आने का चन्दा इकठ्ठा हुआ, मौसी को दे दिया गया... उसकी विदाई की भी तैयारी की गई. बिल्ली को सभी चूहों ने मिलकर हमाम साबुन से नहलाया. उसे माला पहनाई गई. मूंछो पर इत्र लगाया गया और गले में एक सुन्दर सा मफलर टांग दिया गया. बिल्ली के जाने की तैयारी हो गई... धीरे धीरे बिल्ली ने चलना शुरू किया....सारे चूहे नाचने गाने लगे. मोटा चूहा गाने लगा....ना जा.....!! तू कहीं अब ना जा....!!! आशिकाना चूहा बिल्ली की नाक पर बैठकर फुदकने लगा....बिल्लो रानी....!! कहो तो अभी जान दे दूं........!!! कोई कर रहा था बल्ले बल्ले और कोइ धिन्चक धिन्चक धिन. ... चूहों का भांग का नशा लगभग चढ़ चुका था और मदमस्त होकर नाच रहे थे.....बिल्ली का दस कदम चलते ही मन बदल गया और एक एक करके सारे चूहों को मारकर खा गयी. सिर्फ दो चूहे जिंदा बचे जिन्होंने नशा नहीं किया था...बस दोनों आपस में यही चर्चा कर रहे थे.......देखलो भैया नतीजा...!!! बुरे आदमी की बात पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए.......!!!!




Sunday, January 9, 2011

अक्ल, शिकवा, दौड़, धर्म की किताबें, रातें, शरारत

1. अक्ल

थोड़ी सी अक्ल का बोझ
मैं ढोता रहा
अक्ल डालती रही पर्दा
मेरी आँखों के आगे,
किसी के दिल में झाँकने के लिए
मुझे चश्मा लगाना पड़ता है
अब और नहीं सहा जाता
खुदा,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले...!!!

2. शिकवा

गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
हमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!

3 . दौड़

मैं गुलदस्ते की जगह
टिकट लेकर दौड़ा
तब तक ट्रेन होर्न बजा चुकी थी
मैं कुछ स्थान पा पाता
उससे पहले ही
पिछड़ गई थी
मेरी दौड़...!!!


4 . रातें 


तेरी बाहों में 
रहते रहते
यूँ ही गुज़र गईं कई रातें 
आज डर लगने लगा है
कहीं सूरज
कल फिर से ना उग आये...!!! 
 

5 . शरारत 


जानता हूं 
तू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस  ला देता है...!!!