Wednesday, August 3, 2011

माँ, तुम

माँ कितना विस्तृत शब्द
अपने आप में एक ब्रह्माण्ड
क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश
इससे बड़े हो सकते हैं ?

तुमने ही किया सृजन
ऊँगली पकड़ चलना सिखाया    
तुतला कर बोलना सिखाया
खाना भी तो तुम ही से सीखा  
उंगलियाँ काट काट कर.

तुम मेरी हर इच्छा को
बिना कहे समझ जाती थी
मेरी हर बुराई का
तुमने ही संहार किया
डांट कर या पीट कर
वो भी तो कितना सुखद था.

मैंने तो तुम में ही
देखा है न
सृजन, पालन और निर्वाण
तो क्यूँ मानू मैं?
अदृश्य ईश्वर को,
जब तुम साक्षात हो.

अब कुछ बदल सा गया है न
तुम मुझे पीटती  भी नहीं हो
डांटती भी कम हो
क्या इसलिए कि?
मैं अब तीन महीने में
घर आता हूँ??

या इसलिए कि
अब सत्ताईस का हो गया हूँ!.
क्या सत्ताईस का होना
इतना बड़ा माना जाता है कि,
तुम मेरा विवाह करके
मेरे बड़े होने का
प्रमाण देना चाहती हो!

फिर तो तुम्हारा डांटना  
और भी कम हो जायेगा ना
फिर क्या फायदा? 
ऐसे नए बंधन का जो
मुझसे मेरा बचपन छीन ले!

ईश्वर से बस एक ही
प्रार्थना करता हूँ
हे ईश्वर, तू जिस रूप में
मेरे समक्ष है
बने रहना
मुझे कभी
बड़ा मत होने देना...