Tuesday, December 20, 2011

जहां न पंहुचे रवि, वहां पहुंचे कवि

जहां न पंहुचे रवि
वहां पहुंचे कवि
यह तुलना करके
किसने किसका मान बढाया?
रवि का,
या कवि का?

या यह दोनों के
सामर्थ्य की परीक्षा है?

निश्चय ही सूरज
चमका देता है
ऊष्मा देता है,
जल, थल, नभ को
चाँद को, ग्रहों को
उपग्रहों को.

परन्तु उसके अपने
सामर्थ्य की सीमा है
वो नहीं जा सकता
परे, अपने आवरण से
रहना होता है स्थिर
अपने अक्ष पर
सहना भी पड़ता है
ग्रहण
समय समय पर.

वहीं,
कवि के सामर्थ्य की
कोई सीमा नहीं है
बिना पंख उड़ सकता है
सौरमंडल के भीतर भी
बाहर भी.

वायु के वेग से
तेज बह सकता है
सूर्य के तेज से अधिक
चमक सकता है
क्षण भर में कर सकता है यात्रा
ब्रह्माण्ड की.

सरस्वती की वीणा से
झरनों से, चक्रवातों से
गरजनों से, चमकती बिजलियों से
संगीत चुरा सकता है
उसे शब्दों में ढाल सकता है.

इससे भी परे वो
अपनी कल्पनाओ से
एक नई सृष्टि का
सृजन कर सकता है
मन-मस्तिष्क को जीत सकता है.

वह भी कह पढ़ सुन देख सकता है
जो यथार्थ में कहीं
देखा नहीं गया
रचा नहीं गया.

कवि की अपनी
अलग ही पहचान होती है
अद्वितीय हृदय, सोच, अभिव्यक्ति
जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में कहीं
समान नहीं होती.

यही सामर्थ्य सिद्ध करता है
एक अद्भुत छवि
और कथन कि
जहां न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि..


5 comments:

  1. सटीक बात कही है ... रवि की पहुँचने की सीमाएं हैं पर कवि की नहीं ..

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  2. आपने बहुत सही लिखा है |कवी जहां जा सकता है रवि नहीं आखिर कल्पना जो उसके साथ है |कवी कि महिमा प्रतिपादित करती सुन्दर प्रस्तुति |बधाई |
    आशा

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  3. सही बात की सुंदर प्रस्तुति...

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  4. सटीक बात कही है ... रवि की पहुँचने की सीमाएं हैं पर कवि की नहीं ..

    Please see

    http://www.facebook.com/people/Anwer-Jamal-Khan/100001238817426#!/note.php?note_id=283936911657600

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  5. बहुत सुंदर जी....:)
    आप तो कहीं से भी कुछ भी लिख देते हैं
    पर जो भी लिखा है सटीक है,मज़ा आया पढ़ कर:)

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