Monday, February 27, 2012

घूस (गुस्ताखी माफ़)!

(सनद रहे कि घूस लेना और देना अनैतिक भी है और अपराध भी)....

घूस, तुम हो कण कण में व्याप्त
हर अच्छे भले इंसान के ह्रदय का भाग.

मैं तुम पर क्या कविता लिखूंगा
कोशिश करूंगा तो अपना ही उपहास करूँगा.

तुम्हारा स्तर मेरी कलम से कहीं उंचा है
तुम्हारी महिमा जो न जाने, उसको केमिकल लोचा है.

बंद फाइलें तुम खुलवाती
खुली फाइलें  तेज चलवाती
हर काम-धाम की गति बढ़ाती
फिर भी नादानों के मुख व्याधि कहलाती.

तुम मेरे लिए तो सबसे बढ़ी शक्ति हो
कोई ऐरी गैरी व्याधि नहीं, सर्वोत्तम औषधि हो.

जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए
खुद को मैं असमर्थ सा पाने लगूं
तुम्हे याद करके मुस्कुरा देता हूँ
और लिफाफा टेबल के नीचे से सरका देता हूँ.

तुम्हारी विशेषता भी अपूर्व है
तुम्हे देने वाला भी और पाने वाला भी खुश है
ऐसी अद्भुत गुण की तुम स्वामिनी हो
सर्वशक्तिमान वज्रपथ गामिनी हो.

तुम्हारे आगे नित नित शीश झुकाता हूँ
निस्वार्थ भाव से एक विनती करता हूँ
तू अपना दाम, रुतबा बढ़ा, लगा होड़ पे होड़
कसम तुझे अपने वजूद की, बस मेरा पीछा छोड़...:)