Thursday, May 24, 2012

ऊंची उड़ान 


मेरे मित्रों 
शुभचिंतको 
मैं सदैव आभारी हूँ 
आपका।

कि देते रहे हो
सदा-सर्वदा 
प्रेरणा और साहस मुझे 
ऊपर उठने के लिए
ऊँची उड़ान भरने के लिए।

साथियों! जितना ऊँचा 
उठना चाहिए था उतना 
तो उठ लिया 
पर दे न पाया कुछ 
बहुत कुछ लेकर भी 
इस संसार को।

फिर और ऊपर उठने का 
क्या फायदा,
मेरे सिवा किसी को?

क्या रंग पोतकर मैं अगर 
अपनी चमड़ी गौरी कर लूं 
बाल मशीनों से घुमा लूं 
सूटेड बूटेड हो लूं 
चमचमाती गाडी में बैठ लूं 

तो क्या सिर्फ इसी को 
ऊपर उठना माना जायेगा?

चलो मान लेते हैं,
इससे भी ऊपर उठा और
मेरे ह्रदय का रंग काला ही रहा 
मेरे विचार दूषित ही रहे 
पैर धरातल पर न रहे 
किसी के लिए कुछ न कर पाया 
इस धरा को कुछ दे न पाया।

तो क्या महत्व है मेरा 
इस तरह ऊपर उठने का?

बजाय इसके,
मैं अगर दो पल हंस लूं 
तुम्हे हंसा लूं 
दो अजनबी गले लगा लूं 
आपको खुश कर लूं 
कुछ कविता सुना लूँ 
भूखे को भोजन करा लूं 
चंद शब्द किसी सुंदरी की 
तारीफ़ में कह लूं 

साथ बैठ थोड़ी गपशप 
थोड़ी शरारत कर लूं 
तो क्या यह,
ऊपर उठना नहीं है?

मेरे मित्रों!
कृपया मुझे विवेक दें,
मैं बुद्धिहीन हूँ! 
 
 

3 comments:

  1. जो दिशा सुख दे स्वयं को, वही श्रेष्ठ है, औरों के अनुसार जीने में कोई रस नहीं।

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  2. आत्म मंथन सा करती रचना ...

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