Sunday, November 17, 2013

चलना है यारों

(वर्ष २००५ में लिखी एक कच्ची कविता जो अभी तक अधूरी है। फिर भी लुप्त होने से बचाने  के लिए पोस्ट कर रहा हूँ )

सफ़र है बहुत लम्बा
पर चलना है यारों
कोई साथ  चले न चले,
अकेले ही  कदम बढ़ाना है यारों।

समय दौड़ेगा सतत
अकेला, अमूर्त, फिर भी मजबूत
प्रहर आठ पूरे  मिले न मिले,
पर चलना है यारों।

पथ होगा पथरीला कंटीला,
लोग कहें चलना हमारी भूल
पर रेगिस्तान में गंगा लानी है तो
नंगे पैर भी चलना है यारों।

यह ठोस आधार नही कि
कोई गया नही  कभी उस तरफ
गर रचना है इतिहास तो,
प्रथम बार चलना है यारों।  

2 comments:

  1. नया इतिहास वही रचता है जो अकेले चलता है ...

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