Monday, July 26, 2010

सपना टूट जाता है

रात के अंधेरों में
तारों की जगमगाहट के बीच
जब चांदनी शिखर पर होती है
चाँद अंगडाई लेता है.

तब तुम आती हो
कुछ लहराते हुए, कुछ इठलाते हुए
कुछ बल खाते हुए, कुछ शर्माते हुए.

तेरे गेसुओं के बादल  
होठों की मुस्कराहट
काजल की श्याही
गजरे की महक
रिझाती है मुझे.

मैं मुस्कुराता हूं
भाग्य पर इठलाता हूं
बेताब हो तुम्हे
छूने की कोशिश करता हूं
पर,
सपना फिर टूट जाता है......!!!!!!!!!! 

4 comments:

  1. देवेन्द्रजी
    आपकी सोच , आपकी अभिव्यक्ति बहुत ख़ूबसूरत है ।
    बेताब हो तुम्हे
    छूने की कोशिश करता हूं
    पर,
    सपना फिर टूट जाता है......!!!!!!!!!!

    युवा मन की भाव पूर्ण कविता के लिए बधाई !
    आपके सपने साकार होने की दुआ करता हूं ।

    शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा…

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  2. ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति, ख़ूबसूरत कविता...

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  3. अच्छी भावपूर्ण रचना... बहुत सुंदर !!!

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  4. प्यारी सी कविता... नए उम्र की कल्पना और उल्लास से भरी... सुन्दर-अतिसुन्दर....

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