वर्तमान दौर में लोग धर्म के नाम पर बंटे ह्युए है. जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि के नाम पर लोगो ने अपने आपको बाँट लिया है. समाज ने खुद को पहले धर्मं के नाम पर अलग अलग किया, फिर जातियों के नाम पर, फिर उपजातियों के नाम पर. फिर उसमे भी गौत्र के नाम पर, और भी कई तरह से धर्म के नाम पर समाज ने अपने बीच दीवारें चुन लीं और ऊंच - नीच छोटे-बड़े का भेद पैदा कर लिया. धीरे धीरे यह स्थिति आज भयावह हो गई है, जहां आतंकवाद धर्म का ही परिणाम है. वहीं आज धर्म के नाम पर ही तुच्छ राजनीति होने लगी है. कहीं मंदिर मस्जिद के लिए समाज को तोडा जाता है, कहीं जातिगत आरक्षण के नाम पर. यहाँ तक कि समाज ने जाति - सम्प्रदाय के नाम पर अपने पूजा स्थल भी कालांतर में अलग अलग कर लिये.
परन्तु, यथार्थ में देखा जाए तो समाज का खंड खंड होना धर्मं का परिणाम नहीं है. विडंबना यह रही है की लोगों ने धर्म को तो अपनाया लेकिन धर्म के मर्म को नहीं. समाज ने धर्म का अन्धानुकरण किया. धर्म में जो सन्देश लिखा है उसे समझने की किसी ने कोशिश नहीं की बल्कि हर व्यक्ति ने उसकी अपने ढंग से, अपनी सुविधानुसार, अपने दृष्टिकोण से व्याख्या की है. व्यक्ति ने धर्म को उसी तरह समझा, जैसा उसने समझना चाहा और उसे लेकर कट्टर बन गया जो कि निश्चित रूप से संकीर्ण मानसिकता का ही परिणाम है.
वरना, धर्म ग्रंथों ने तो सदा ही मानव जाति को एक समझा. एक ही परमात्मा को सबका रचनाकार बताया है. "वासुधैव कुटुम्बकम" जीवन का सूत्र रहा है. धर्मो ने जीवन के तरीके बताये हैं . अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने के मार्ग बताये हैं. धर्मो का उद्देश्य हमेशा जोड़ना रहा है. आवश्यकता इस बात की है कि समाज के हर तबके को शिक्षित बनाया जाए ताकि बुद्धि का विकास हो सके और वो धर्म को उन्ही अर्थों में समझें , जिन अर्थों में उन्हें लिखा गया है. धार्मिक कट्टरता के स्थान पर आवश्यकता है एक धार्मिक चेतना की ताकि धर्मो का सार ग्रहण किया जा सके. धर्म के मर्म और परमात्मा के सन्देश को सही अर्थों में समझा जा सके. तभी समाज आपस में जुड़ेगा, टूटेगा नहीं. सिर्फ एक इश्वर होगा और एक ही धर्म होगा और एक ही जाति होगी-मानव जाति. और जीवन का सूत्र होगा-"वासुधैव कुटुम्बकम".
परिभाषा तो कहती है जो धारण करे, वह धर्म है। तोड़ने वाला तो अधर्म हुआ।
ReplyDeleteहर चीज़ के दो पहलू होते हैं और धर्म के भी..
ReplyDeleteकुछ लोगों ने इसे सही मार्ग के लिए चुना और कुछ इसे गलत दिशा की ओर मोड़ ले गए. गलती इंसान की ही है, धर्म की नहीं..
धर्म का मर्म समझने की जरूरत है ... सही कहा है आपने ...
ReplyDeleteआज कल तो धर्म तोड़ ही रहा है .
ReplyDeleteWelcome back :)
ReplyDeleteReligion is often abused..
it's concepts are often misrepresented and people are too fool to understand this..
when it comes to religion they just shut their eye