कोलाहल है
बड़ी बड़ी बातों का
झँसो का-आश्वासनों का।
कोई पढ़ा लिखा है
किसी ने लिखा पढ़ा है।
कुछ ही हैं बातें
जो सोची समझी हैं
बाकी सब नासमझी हैं।
सबकी अपनी अपनी सवारी है
किसी का किसान किसी का मंदिर
किसी का गड्ढे किसी का व्यापारी
किसी का गरीब किसी का बेरोजगार।
पतवार आएगी
भरोसे की;
नौकरी का
कर मे कमी का
सड़क का
सस्ती बिजली और पानी का।
हाथ कमल साइकिल
आदि आदि मे से एक
उसी पतवार से पहुचेगा
रायसीना की पहाड़ी के
उस पार
जहा सत्ता है
ताकत है।
पहाड़ी का कद
हो जाएगा ऊंचा
हर बार की तरह
और
ताकता रह जाएगा नाविक
उसकी ऊंचाई!!!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-04-2019) को "यन्त्र-तन्त्र का मन्त्र" (चर्चा अंक-3301) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
The post was so nice... I am glad to read this post.. thank you so much for sharing.
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