Thursday, April 1, 2010

कौन हो तुम मेरे

कल तक मेरे जाने के नाम से भी भरती थीं तुम सिसकियाँ
आज बड़ी बेदर्दी से कहती हो............
कौन हो तुम मेरे!

तेरे लबों कि हरारत ने किया था कैद मुझको
उन्ही लबों से तुम आज कहती हो........
कौन हो तुम मेरे!

तेरी आँखों की शरारत ने डुबोया था मुझको
बेहया सी नज़रें चुराकर तुम आज कहती हो.........
कौन हो तुम मेरे!

तेरे वजूद कि करीबी ने जीना सिखाया था मुझको
दूर जाकर तुम आज कहती हो...........
कौन हो तुम मेरे!

तेरी खुली खुली जुल्फों के साए ने सोना सिखाया था मुझको
जुल्फों को समेटकर तुम आज कहती हो......
कौन हो तुम मेरे!

कल तक मेरी खुशबू , मेरी आहटों से पहचानती थीं तुम मुझको
अजनबी सी बनकर तुम आज कहती हो ........
कौन हो तुम मेरे!!!

8 comments:

  1. A fab put up, to make ur heart yearn for someone, somthing made only 4 uuuuuu, awsummm....

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  2. kaun ho tum mere jane kyo pyar is mod par chla aata hai ek shaqs doosre ko pehchaan nahi pata hai
    www.anubhuti-abhivyakti.blogspot.com

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  3. देवेन्द्र जी पता नहीं उसकी क्या मजबूरी होगी...बहुत ही बढ़िया...उच्च स्तर की रचना.

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  4. बहुत ही अच्छी रचना

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  5. बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती! बधाई!

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  6. सुपरिचित का अपरिचित में बदलना यथार्थ है
    क्योंकि बीच में सुविधा के साथ स्वार्थ है

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  7. कल तक मेरे जाने के नाम से भी भरती थीं तुम सिसकियाँ
    आज बड़ी बेदर्दी से कहती हो............
    कौन हो तुम मेरे!
    Aah!

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  8. This comment has been removed by the author.

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