Saturday, March 17, 2012

यथार्थ अमरत्व उपदेश


सर्व विदित है
इस मृत्यु लोक से
निश्चित है पलायन
सबका एक दिन.


भौतिक स्वरुप को
होना ही है ख़ाक
वही बनना और बिगड़ना
हो जाना फिर शून्य में विलीन.

यद्यपि शून्य जीवित रहेगा सर्वदा
और है भी
अनादि से अनंत तक.


इसी में गूंजती रहेगी
हमारी कर्म ध्वनियाँ
आचरण, सदोपदेश, विचार
अभिव्यक्तियाँ और सिद्धांत
शून्य के रहने तक.


स्पष्ट है ये आज भी अमूर्त है
और जो अमूर्त है अमृत्य भी.


इसीलिए, जगदगुरु श्री कृष्ण ने भी
यथार्थ सन्देश में कहा था
कर्म करो-फल की इच्छा नहीं.


कारण भी सुस्पष्ट है
फल या परिणाम नश्वर है
और कर्म, आत्मा की तरह ही 
मरता नहीं कभी.


अनंत कारण बनते रहते हैं
परिणाम मगर बनता और मरता रहता है
और युग युग में बदलता जाता है
विज्ञान भी.


कर्म ही कारण है
कारण ही अमरत्व है
और गीता का
यथार्थ उपदेश भी.....

6 comments:

  1. कर्म ही कारण है
    कारण ही अमरत्व है
    और गीता का
    यथार्थ उपदेश भी.....
    बिल्‍कुल सही ...सार्थक व सटीक अभिव्‍यक्ति ।

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  2. यद्यपि शून्य जीवित रहेगा सर्वदा
    और है भी
    अनादि से अनंत तक.
    सुंदर लेखन के साथ ज़िन्दगी की सार्थकता भी!!!!!बहुत सुंदर रचनाकार हैं आप:)

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  3. प्रिय बंधुवर देवेन्द्र जी
    कैसे मिज़ाज हैं !

    बहुत आध्यात्मिक - दार्शनिक रचनाएं कर रहे हैं आजकल …
    सब कुछ ठीक तो है न !
    :)

    बहुत डूबना पड़ रहा है…
    फल या परिणाम नश्वर है
    और कर्म, आत्मा की तरह ही
    मरता नहीं कभी

    हम जैसों को जिस रचना को समझने में ही पसीना आ रहा है :)
    वह आप द्वारा लिखी गई है … भई वाह !
    नमन ऐसी लेखनी को !!


    ~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ... देवेन्द्र जी

    ....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें.

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  5. सुदर रचना....सुस्पष्ट विचार, भाव व कथ्य... बधाई...

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