हर कोई पाता राहों में
बिखरे पड़े कुछ पत्थर
फर्क बस इतना है
कोई चुनता दीवारें,
और कोई बनाता पुल !!!
मंजिल सबकी अव्वल बिंदु
सबको है पगडण्डी पर चलना
फर्क बस इतना है
कोई सरपट दौड़े जाता
और कोई कहता,
'राह में कांटे बहुत हैं' !!!
दरिया से घिरे हैं सब
पार कर सबको है जाना
फर्क बस इतना है
कोई नहाने के बहाने खोजता है,
और कोई डूबने के !!!
दिवाली हर घर में आती
दीये हैं सबको जलाना
फर्क बस इतना है
कोई तेल जलाता है,
और कोई दिल !!!
हर शाम जल उठते है चराग
कहीं कम कहीं ज्यादा
फर्क बस इतना है
कोई उजाले चुरा लेता है
और कोई कहता-
'लौ कम है' !!!
अवसर देता दस्तक सबको
खट खट, खट खट
फर्क बस इतना है
कोई पहचान लेता है
और कोई कहता-
'बाद में आना' !!!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteप्रिय भाई देवेन्द्र जी
ReplyDeleteआपके ब्लाग की आपकी ही रचना का एक संपादित रूप यहां प्रस्तुत है। आपने अपने ब्लाग में लिखा है कि आप आलोचनाओं का स्वागत करते हैं। मैं समालोचना करता हूं। इसलिए आशा है आप मेरी इस दखलदांजी को इसी तरह लेंगे। अपने इस व्यक्तव्य में से- अदने से व्यक्ति- शब्द को हटा दीजिए।
हरेक को मिलते राह में
बिखरे पत्थर
फर्क बस इतना है
कोई चुनता दीवारें,
और कोई बनाता पुल !!!
मंजिल सबकी एक
सबको है पगडण्डी पर चलना
फर्क बस इतना है
कोई सरपट दौड़े जाता
और कोई कहता,
'राह में कांटे बहुत हैं' !!!
दरिया से घिरे हैं सब
पार सबको जाना
फर्क बस इतना है
कोई तैरने के तरीके खोजता है,
और कोई डूबने के !!!
दिवाली हर घर में आती
दीये हैं सबके आंगन जलते
फर्क बस इतना है
कोई तेल जलाता है,
और कोई दिल !!!
हर शाम चमकते हैं चराग
कहीं कम कहीं ज्यादा
फर्क बस इतना है
कोई उजाले अपनाता है
और कोई कहता-
'अब भी है अंधेरा ’ !!!
अवसर देता दस्तक हर द्वार
फर्क बस इतना है
कोई आगे बढ़ थाम लेता है
और कोई कहता-
'बाद में आना' !!!
priya utsaahi bhaai ji,
ReplyDeleteblog par aaye bahut bahut dhanyawaad.
maargdarshan dwara utsaahwardhan ke liye tahe dil se aapka aabhari hun........vo kehte hain na ki 'nindak niyare raakhiye'
bahut acha laga.
आपकी यह कविता तो बहुत अच्छी है.
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