एक पहिया
शुरू हो जाता है लुढ़कना
हमारे आने के साथ ही
इस दुनिया में.
वो लुढ़कता रहता है लगातार
बिना रुके बिना मुड़े
उसके साथ लुढ़कते रहते हैं हम भी
पहले कोई हमें लुढ़काता है
फिर हम किसी को.
फिर एक दिन पहुँच जाते हैं
कोसों दूर
भूल जाते हैं अपना उद्गम
रास्ते के उतार चढ़ाव
राही, हमसफ़र और सफ़र तक को भी.
ये भी भूल जाते हैं कि
लुढ़कना किधर था
लुढ़क किधर गए
और लुढ़कते लुढ़कते एक दिन
रुक जाता है पहिया
खुद ही.
ये लुढ़कना ही ज़िन्दगी का
नाम है शायद..!!!
गहरी सोच के साथ सुंदर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteशायद-यही जिन्दगी का नाम है. उम्दा रचना.
ReplyDeleteफिर एक दिन पहुँच जाते हैं
ReplyDeleteकोसों दूर
भूल जाते हैं अपना उद्गम
रास्ते के उतार चढ़ाव
राही, हमसफ़र और सफ़र तक को भी.
gahan bhaw
देवेन्द्र जी जब आपने हमें निंदक मान ही लिया है और अपने आंगन में यानी ब्लाग में कुटी छवा कर जगह दे ही दी है तो फिर हम निंदा किए बिना मानेंगे नहीं।
ReplyDeleteशुक्रिया कि आपने अपने को अदने कहना बंद कर दिया। आपके ब्लाग के परिचय को फिर से एक बार पढ़ा निंदक की नजर से। तो जो नजर आया उसे चुनकर बाहर निकाल दिया। संशोधन के बाद जो बचेगा वह कुछ इस तरह होगा
- जीवन बहती हवाओं का संगम है। हमारे विचार और भावनाएं भी इन हवाओं के संग बहते रहते हैं। इस ब्लॉग में मैंने कुछ ऐसे ही उद्गारो को अपनी लेखनी से उतारने की कोशिश की है। आपकी समालोचनाओं का स्वागत है। मुझे आशा है आप मुझे बेहतर लिखने के लिए प्रेरणा देते रहेंगे। -
अगर आपको यह पसंद न आए तो बेशक निंदक की कुटिया की छत पर डाल दें।
अरे देवेन्द्र बहुत पढ़े-लिखे हो का?
ReplyDeleteबहुते गहरी बात बा!
ठुमक-चलत हमार भी पहिया.....
ना जाने पर कौन दिसा???
आशीष
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फिल्लौर फ़िल्म फेस्टिवल!!!!!
aadarniye utsaahiji,
ReplyDeletesabse pehle maine apko pichli tippani me bhai ji kahkar sambodhit kiya tha uske liye kshama prarthi hun. apki blog par tasweer ne mujhe nirdesh diya hai ki aadarniye kahkar sambodhit kiya jaye.
apne punah margdarshan diya uske liye aabhar. pahle to socha agar blog parichaya me sanshodhan kar dun to 'meri abhivyakti' meri abhivyakti nahi rahegi. parantu yatharth me laga ke agar koi samalochak guru ke roop me margdarshan de to awashya hi isse abhivyakti me nikhaar aayega.
punah margdarshan ke liye aapka tahe dil se shukra guzar hun aur aasha karta hu samalochnayen evam margdarshan milta rahega...
bahut badiya kavita...
ReplyDeletereally very nice.......
Pls Visit My Blog and Share ur Comments....
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वाह...शाश्वत सत्य की सुंदर,सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteदेवेन्द्र जी ,
ReplyDeleteआपने सही कहा अगर आलोचना से रूठ जायें तो सीख नहीं पाएंगे .....बशर्ते आलोचना सही सटीक हो ....!!
आपकी इस कविता में लुढक और लुढकते शब्द का इतनी बार प्रयोग हुआ है कि कविता अपना सौन्दर्य खो बैठी है ....कोशिश करें एक शब्द दूसरी बार प्रयोग न हो ......!!
aadarniye heer madam,
ReplyDeletemargdarshan ke liye bahut bahut aabhar...aage se sudhar ka prayatna karunga..
dhanyawad