Monday, July 23, 2012

तेरे बारे में प्रेयसी...

  (बहुत दिनों तक दिमाग की बत्ती बंद रही....ब्लॉग से दूर हो गया....या यूँ  कहिये जब दिल की बत्ती जलती है तो दिमाग चलता है....और कलम लिखती है....लम्बे दिनों बाद लिखा, कुछ टूटा-फूटा आपकी सेवा में पेश है........:)

क्या तुम जानती हो?
मैं तुम्हारे बारे में कैसा सोचता हूँ
कितना सोचता हूँ, कब सोचता हूँ
क्या सोचता हूँ और क्यूँ सोचता हूँ!

दिन की शुरुआत से लेकर
आठवां प्रहार बीतने तक
तुम्हारी बातें तुम्हारी यादें
घूमती रहती है आँखों में
नज़र आती हो तुम ही तुम
कभी हवाओं के झोंको की तरह
कभी रात के सपनो की तरह।

आईने के  सम्मुख होता हूँ तो तुम देखाई देती हो
कलम हाथ में लेता हूँ तो तुम दिखाई देती हो
कभी दिल बहलाने के लिए बगीचे में डोलता हूँ
तो चिड़ियों की चहचहाहट में तुम सुनाई देती हो।

तुम्हारे चेहरे में चाँद सी शीतलता
केशों की घनघोर घटायें
अधरों में इन्द्रधनुष
आँखों में मोती सा आवरण
एक और ही कुदरत नज़र आती है
सम्भलने की लाख कोशिशें मेरी,
यूँ ही बहा ले जाती हैं।

और तुम जानती हो?
जब तुम्हारे दांतों की तरफ देखता हूँ
तो तुम्हारे अधरों से ईर्ष्या करता हूँ
कि वो कितने बड़े सिकंदर हैं,
जो हर घड़ी उस धवल पर स्पर्श रखते हैं।

और जो तुम्हारे अधरों से ध्वनि आती है
सातों सुर गुनगुनाती है
तुम्हारे नाक, दामन, उदर और कटि की सुन्दरता
देख देख मेरा मन नहीं भरता
उस पर भाषा, सुशीलता व सौम्यता
ह्रदय की काया सी कोमलता
भला,ऐसा सौदर्य किसका मन नहीं हरता!


आज मन के सारे उदगार तुम्हारे सम्मुख रखता हूँ
अपने चंद शब्दों में प्रीत का प्रस्ताव करता हूँ
मुझे तुझसे प्रीत है प्रेयसी....
तुझसे बस इक बात का इकरार चाहता हूँ
सुंदरी!मैं बस तुझ पर अधिकार चाहता हूँ!!!


5 comments:

  1. कई लोग तो सोचना बन्द कर देते हैं..

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  2. ये तो रस से भरा प्रेम गीत है.. क्या खूब!

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  3. बहुत दिनों बाद आप आए ... चलिए आए तो सही .. लिखने का सिलसिला शुरू हुवा ये अच्छी बात है ...
    लाजवाब रचना से शुरुआत की है ... बधाई ...

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