1. अक्ल
थोड़ी सी अक्ल का बोझ
मैं ढोता रहा
अक्ल डालती रही पर्दा
मेरी आँखों के आगे,
किसी के दिल में झाँकने के लिए
मुझे चश्मा लगाना पड़ता है
अब और नहीं सहा जाता
खुदा,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले...!!!
2. शिकवा
गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
हमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!
3 . दौड़
मैं गुलदस्ते की जगह
टिकट लेकर दौड़ा
तब तक ट्रेन होर्न बजा चुकी थी
मैं कुछ स्थान पा पाता
उससे पहले ही
पिछड़ गई थी
मेरी दौड़...!!!
4 . रातें
थोड़ी सी अक्ल का बोझ
मैं ढोता रहा
अक्ल डालती रही पर्दा
मेरी आँखों के आगे,
किसी के दिल में झाँकने के लिए
मुझे चश्मा लगाना पड़ता है
अब और नहीं सहा जाता
खुदा,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले...!!!
2. शिकवा
गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
हमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!
3 . दौड़
मैं गुलदस्ते की जगह
टिकट लेकर दौड़ा
तब तक ट्रेन होर्न बजा चुकी थी
मैं कुछ स्थान पा पाता
उससे पहले ही
पिछड़ गई थी
मेरी दौड़...!!!
4 . रातें
तेरी बाहों में
रहते रहते
यूँ ही गुज़र गईं कई रातें
आज डर लगने लगा है
कहीं सूरज
कल फिर से ना उग आये...!!!
5 . शरारत
जानता हूं
तू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...!!!
"ek koshish thi jo achi lagi,shayad aap koshish karne se piche nahi hatenge kisi ko paane ki koshish darsha rahi hai aapki kuch panktiyaan"
ReplyDelete"man without brain"...vry interesting...Devendra ji CS hoke aap aisa kahenge to hm becharon ka kya hoga????
ReplyDeleteI liked ur post. Thanks
Devendra ji p bahut hi khoobsoorti se apni baat ko kavita me badal dene ka hunar rakhte hain.....Very Very nice I liked your way of writing........
ReplyDeleteachhi post
ReplyDelete..
aabhar
'धर्म की किताबें' सबसे अच्छी लगी..... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर शब्दों का संगम है इन क्षणिकाओं में ...मेरे ब्लाग पर आपके प्रथम आगमन को स्वगात है ।
ReplyDeleteशानदार क्षणिकाएँ...
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर देवेन्द्र जी
ReplyDeleteनमस्कार !
छहों क्षणिकाएं प्रभावशाली हैं ।
पांचवीं और छठी ज़्यादा पसंद आईं …
… आज डर लगने लगा है
कहीं सूरज
कल फिर से ना उग आये...!!!
… तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...!!!
मेरे कई गीतों - ग़ज़लों के भाव इनमें समाहित हैं , वाह ! वाऽऽह !
>~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
कविता कहने का आपका अंदाज़ बिल्कुल अलग है।
ReplyDeleteप्रत्येक रचना में भावों की ताज़गी है।
सभी बहुत अच्छी लगीं।
शुभकामनाएं।
ek se badhkar ek ...
ReplyDeletegaagar me saagar ./
bahut achcha likhte hain aap.
ReplyDeleteकिसी के दिल में झाँकने के लिए
ReplyDeleteमुझे चश्मा लगाना पड़ता है!
बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ!
बेहतरीन... बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ|
ReplyDeleteमकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई|
पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
ReplyDeleteदूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी
गर ये जाति धर्म की किताबें
सिर्फ तोड़ती ही हैं
तो फिर इन्हें
कोई आग क्यूँ नहीं लगा देता...!!!
बहुत सुन्दर और समसामयिक !
पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
ReplyDeleteदूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी
दूसरी बार जब जाति गोत्र एक था तो टूटने का करण भी और रहा होगा ...?
जानता हूं
तू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...!!!
ये बेहतरीन लगी .....
बहुत अच्छा प्रयास ....
देवेन्द्र जी नमस्ते!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी भावाभिव्यक्ति ...
कुछ दिन पहले ही एक वाक्या हुआ और मैं भी इस अक्ल से परेशां हो गया ...बहुत ही सही कहा है आपने...
"खुदा,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले.."
" थोड़ी सी अक्ल का बोझ
ReplyDeleteमैं ढ़ोता रहा "
..............
" खुदा ,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले ..."
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
गागर में सागर सरीखी लगी ...
मेरे ब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद ।
पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
ReplyDeleteदूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी
गर ये जाति धर्म की किताबें
सिर्फ तोड़ती ही हैं
तो फिर इन्हें
कोई आग क्यूँ नहीं लगा देता...!!!
awaysome creations
bahut gahra likhte ho yarra ,sagar mein gagar
gine chune shabdon mein sab kuch kah diya
har shabd sarthak hai apni jagah par
vaise aapke lekhan ke bhaav ko samajhne ke liye man or akal dono ki hi jarurat padti hai
aapko padhna accha laga
गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
ReplyDeleteहमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!
waah
बहुत सुन्दर और समसामयिक !
ReplyDeleteधन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
ReplyDelete.मेरे ब्लाग पर आपके प्रथम आगमन का स्वागत है . अच्छी क्षणिकाएं . शुभकामना.
ReplyDeletebeautiful expressions, well said.
ReplyDeleteजानता हूं
ReplyDeleteतू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...
बहुत ही नाज़ुकी से तराशा इस लम्हे को ... लाजवाब ... मज़ा आ गया सभी को पढ़ कर ....
जानता हूं
ReplyDeleteतू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...!!!
किसी के एहसासों को दर्शाती हुई रचना !
सुन्दर रचना !
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
ReplyDeleteसभी कवितायें अच्छी हैं.
ReplyDeleteनिम्न कविता ने ध्यान ज़ियादा आकर्षित किया.
जानता हूं
तू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस ला देता है...!!!
:-) NICE ONE
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