Thursday, December 12, 2013

आम के पेड़ में अंगूर (व्यंग)

मेरे अड़ौस में एक साल पहले एक पड़ौसी आया  था, नाम है-आम लाल।  और मेरा-जनता मल।  वह जब से आया अपने घर के आँगन में आम के पेड़ लगा रहा है।  बीज डाले,  सिंचाई की सर्दी-गर्मी-बरसात तीनो मौसम। कुछ साथी भी बटौर लिए आम की खेती में।  मेरी मजबूरी है कि मुझे उसके घर के सामने से गुज़रना पड़ता है। और उसको मुझसे कुछ ज्यादा ही चिढ है।  जब भी मैं उसके घर के सामने से गुज़रता हूँ तो मुझे चिढ़ाने के लिए उसके मुख्य दरवाजे पर लटका हुआ प्लास्टिक का आम हाथ में पकड़ कर, बांहे चढ़ाकर, पैर फटकार कर कहता है- अरे जंनतामल! जाता कहाँ है? सुन ले! आम के पेड़ लगा रहा हूँ।  जब ये पाक जायेंगे तो खूब खाऊंगा।  तुझे तो चखाउंगा भी नहीं।  

मैं उसे छोटा मोटा माली समझकर भाव ही नहीं देता था।  बोलता था-तेरे जैसे माली ३६ हैं हिंदुस्तान में।  तो वो पलट के जवाब देता-"लेकिन मैं अलग किस्म का माली हूँ।  मेरे बाग़ में आम उगेंगे भी, खिलेंगे भी और फलेंगे भी। "

लेकिन मैं उसकी बात को बीड़ी के धुंए की तरह हवा में उडाता रहा। 

और ऊपर वाले कि कृपा देखिये उसके ऊपर, आम के पेड़ में अंगूर निकल आये।  आमलाल माली न रहकर-----हो गया, क्यूंकि अब उसके हाथ में अंगूर है। 

अब जब खूब सारे अंगूर फल आये तो वो मुझे कहता है कि अंगूर तू खा ले।  

पर मुझे समझ में यह नहीं आता कि वह अपने अंगूर मुझे क्यूँ खिलाना चाहता है? उसके खेत में उगे हैं,  वह खाये। जश्न मनाये।  

मुझे मेरे अगल वाले अड़ौसी से पता चला है कि उसको उसके बगल वाले पड़ौसी ने आठ अंगूर बिना किसी शर्त ऑफर किये हैं फिर भी आमलाल है कि  टस  से मस नहीं हो रहा। कहता है पूरे छत्तीस मेरे खेत में  ही उगाऊंगा फिर ही खाऊंगा। जनतामल के पास ३२ हैं, पहले वह खाये।   

मैं पूछता हूँ- प्यारे आमलाल! पहले तो तू सिर्फ आम उगाने की बात करता था।  ३६ की तो कभी बात की ही नहीं।  अब आम की जगह २८ अंगूर तेरे आम के खेत में निकल आये, तो आम के बाग़ में अंगूरी लताएँ फैलाना चाहता है।  कल इसे अमरूदों का बाग़ बना देगा।  

या प्यारे आमलाल, मैं यह समझ लूं कि तुझे अंगूर खाना ही नहीं आता? कहीं यह तो नहीं सोच रहा है कि कैसे खाऊँ?  पीसकर, बांटकर या उबालकर? या जनतामल को चखाकर खाना चाहता है कि कहीं खट्टे तो नहीं? या मुझे खाते देखकर खाना सीखना चाहता है?? बबुआ ! अंगूर खाना भी कला है। ---- के हाथ में अंगूर टिकता नहीं बहुत दिन। मैं तो कहता हूँ  मौका मिला है, पड़ौसी के आठ ले ले और खा ले! ज्यादा ऊँची नाक रखने में कोई फायदे नहीं है।  आम के पेड़ में अंगूर एक ही बार निकलते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह काठ की हांडी बार बार नहीं चढ़ती :):):)      
  

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