Sunday, January 9, 2011

अक्ल, शिकवा, दौड़, धर्म की किताबें, रातें, शरारत

1. अक्ल

थोड़ी सी अक्ल का बोझ
मैं ढोता रहा
अक्ल डालती रही पर्दा
मेरी आँखों के आगे,
किसी के दिल में झाँकने के लिए
मुझे चश्मा लगाना पड़ता है
अब और नहीं सहा जाता
खुदा,
तू अपनी अक्ल वापस ले ले...!!!

2. शिकवा

गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
हमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!

3 . दौड़

मैं गुलदस्ते की जगह
टिकट लेकर दौड़ा
तब तक ट्रेन होर्न बजा चुकी थी
मैं कुछ स्थान पा पाता
उससे पहले ही
पिछड़ गई थी
मेरी दौड़...!!!


4 . रातें 


तेरी बाहों में 
रहते रहते
यूँ ही गुज़र गईं कई रातें 
आज डर लगने लगा है
कहीं सूरज
कल फिर से ना उग आये...!!! 
 

5 . शरारत 


जानता हूं 
तू शरारत नहीं करती
पर यदा कदा
तेरा हया से पलकें झुका लेना
अमावस  ला देता है...!!! 

28 comments:

  1. "ek koshish thi jo achi lagi,shayad aap koshish karne se piche nahi hatenge kisi ko paane ki koshish darsha rahi hai aapki kuch panktiyaan"

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  2. "man without brain"...vry interesting...Devendra ji CS hoke aap aisa kahenge to hm becharon ka kya hoga????

    I liked ur post. Thanks

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  3. Devendra ji p bahut hi khoobsoorti se apni baat ko kavita me badal dene ka hunar rakhte hain.....Very Very nice I liked your way of writing........

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  4. 'धर्म की किताबें' सबसे अच्छी लगी..... सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इन क्षणिकाओं में ...मेरे ब्‍लाग पर आपके प्रथम आगमन को स्‍वगात है ।

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  6. शानदार क्षणिकाएँ...

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  7. प्रिय बंधुवर देवेन्द्र जी
    नमस्कार !

    छहों क्षणिकाएं प्रभावशाली हैं ।

    पांचवीं और छठी ज़्यादा पसंद आईं …
    … आज डर लगने लगा है
    कहीं सूरज
    कल फिर से ना उग आये...!!!

    … तेरा हया से पलकें झुका लेना
    अमावस ला देता है...!!!

    मेरे कई गीतों - ग़ज़लों के भाव इनमें समाहित हैं , वाह ! वाऽऽह !

    >~*~मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. कविता कहने का आपका अंदाज़ बिल्कुल अलग है।
    प्रत्येक रचना में भावों की ताज़गी है।
    सभी बहुत अच्छी लगीं।
    शुभकामनाएं।

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  9. ek se badhkar ek ...
    gaagar me saagar ./

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  10. किसी के दिल में झाँकने के लिए
    मुझे चश्मा लगाना पड़ता है!
    बेहतरीन! बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ!

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  11. बेहतरीन... बहुत ही सुन्दर भाव और रचनाएँ|
    मकरसंक्रांति की हार्दिक बधाई|

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  12. पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
    दूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी
    गर ये जाति धर्म की किताबें
    सिर्फ तोड़ती ही हैं
    तो फिर इन्हें
    कोई आग क्यूँ नहीं लगा देता...!!!

    बहुत सुन्दर और समसामयिक !

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  13. पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
    दूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी

    दूसरी बार जब जाति गोत्र एक था तो टूटने का करण भी और रहा होगा ...?

    जानता हूं
    तू शरारत नहीं करती
    पर यदा कदा
    तेरा हया से पलकें झुका लेना
    अमावस ला देता है...!!!

    ये बेहतरीन लगी .....
    बहुत अच्छा प्रयास ....

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  14. देवेन्द्र जी नमस्ते!
    बहुत ही अच्छी भावाभिव्यक्ति ...
    कुछ दिन पहले ही एक वाक्या हुआ और मैं भी इस अक्ल से परेशां हो गया ...बहुत ही सही कहा है आपने...
    "खुदा,
    तू अपनी अक्ल वापस ले ले.."

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  15. " थोड़ी सी अक्ल का बोझ
    मैं ढ़ोता रहा "
    ..............
    " खुदा ,
    तू अपनी अक्ल वापस ले ले ..."
    बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
    गागर में सागर सरीखी लगी ...
    मेरे ब्लॉग पर आने के लिये धन्यवाद ।

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  16. पहली बार मैं जब टूटा जाति अलग थी
    दूसरी बार टूटा तो जाति भी एक थी, गौत्र भी
    गर ये जाति धर्म की किताबें
    सिर्फ तोड़ती ही हैं
    तो फिर इन्हें
    कोई आग क्यूँ नहीं लगा देता...!!!


    awaysome creations

    bahut gahra likhte ho yarra ,sagar mein gagar
    gine chune shabdon mein sab kuch kah diya
    har shabd sarthak hai apni jagah par
    vaise aapke lekhan ke bhaav ko samajhne ke liye man or akal dono ki hi jarurat padti hai
    aapko padhna accha laga

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  17. गैरों की खताओं का क्या कोई शिकवा करते,
    हमें तो अपनों के हाथों क़त्ल होना था...!!!
    waah

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  18. बहुत सुन्दर और समसामयिक !

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  19. धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए

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  20. .मेरे ब्‍लाग पर आपके प्रथम आगमन का स्वागत है . अच्छी क्षणिकाएं . शुभकामना.

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  21. जानता हूं
    तू शरारत नहीं करती
    पर यदा कदा
    तेरा हया से पलकें झुका लेना
    अमावस ला देता है...

    बहुत ही नाज़ुकी से तराशा इस लम्हे को ... लाजवाब ... मज़ा आ गया सभी को पढ़ कर ....

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  22. जानता हूं
    तू शरारत नहीं करती
    पर यदा कदा
    तेरा हया से पलकें झुका लेना
    अमावस ला देता है...!!!

    किसी के एहसासों को दर्शाती हुई रचना !
    सुन्दर रचना !

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  23. ..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती

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  24. सभी कवितायें अच्छी हैं.
    निम्न कविता ने ध्यान ज़ियादा आकर्षित किया.


    जानता हूं
    तू शरारत नहीं करती
    पर यदा कदा
    तेरा हया से पलकें झुका लेना
    अमावस ला देता है...!!!

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