आज मैंने ठान ली है
कि नहीं करूँगा
कोई काम
किसी की सुनूंगा नहीं
कविता नहीं लिखूंगा
अखबार भी नहीं पढूंगा
देखता हूँ कैसे चलती है,
दुनिया मेरे बिना.
अगले दिन प्रातः देखता हूँ
सूरज भी उग आया
पक्षी भी चह चहा रहे हैं
सड़कें भी दौड़ रही हैं
बाज़ार भी कल जैसे ही हैं.
यथार्थ यही है
कुछ नहीं फर्क पड़ता
मेरे रहने, न रहने से
दुनिया कल भी चल रही थी
कल भी चलेगी
वैसे ही अनवरत
मेरे बिना भी
वाह क्या बात है!! आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई
ReplyDeleteइसे भी देखने की जेहमत करें शायद पसन्द आये-
फिर सर तलाशते हैं वो
प्रकृति तो आत्मसात कर लेती है तो पूर्ववत ही रहती है .... अपने ढूंढते हैं तो उनको फर्क पड़ता है
ReplyDeleteऐसे ही चलती रहेगी दुनिया, थोड़ा आनन्द उठा लें।
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