Monday, May 7, 2012

आज मैंने ठान ली है


आज मैंने ठान ली है
कि नहीं करूँगा
कोई काम
किसी की सुनूंगा नहीं
कविता नहीं लिखूंगा
अखबार भी नहीं पढूंगा
देखता हूँ कैसे चलती है,
दुनिया मेरे बिना.

अगले दिन प्रातः देखता हूँ
सूरज भी उग आया
पक्षी भी चह चहा रहे हैं
सड़कें भी दौड़ रही हैं
बाज़ार भी कल जैसे ही हैं.

यथार्थ यही है
कुछ नहीं फर्क पड़ता
मेरे रहने, न रहने से
दुनिया कल भी चल रही थी
कल भी चलेगी
वैसे ही अनवरत
मेरे बिना भी

3 comments:

  1. वाह क्या बात है!! आपने बहुत उम्दा लिखा है...बधाई
    इसे भी देखने की जेहमत करें शायद पसन्द आये-
    फिर सर तलाशते हैं वो

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  2. प्रकृति तो आत्मसात कर लेती है तो पूर्ववत ही रहती है .... अपने ढूंढते हैं तो उनको फर्क पड़ता है

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  3. ऐसे ही चलती रहेगी दुनिया, थोड़ा आनन्द उठा लें।

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