Friday, April 29, 2011

सुख की तलाश में

(अगर नजरिया नकारात्मक हो जाये, तो ज़िन्दगी कुछ यूँ दिखाई देती है....)

सुख की तलाश में


काटते गुजारते दिन
बरस छब्बीस गुजर गए
धीरे धीरे रिटायर हो जायेंगे
पहले नौकरी से
फिर ज़िन्दगी से.

बचपन में पढने का दुःख था
अब नौकरी का दुःख है
दफ्तर में बॉस का दुःख है
घर में बीवी का दुःख है
दोस्तों में बीमा करने वालो का दुःख है
बाहर निकलो तो दुकानदारों का दुःख है.

सोता हूँ तो नींद नहीं आती
चादर हटाता हूँ तो मछर काटते हैं
ओढ़ता हूँ तो गर्मी लगती है
स्विच दबाता हूँ, बिजली चली जाती है.

भूख लगती है तो मेस बंद मिलती है
खाना अच्छा बना हो तो भूख नहीं लती
जो मुझे पसंद करे उससे मुझे प्यार नहीं
जिससे मुझे प्यार है मुझे नहीं करती.

अपने दुखों का राग अलापता हूँ
सब कान बंद कर लेते हैं
इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ.

लिंक तो कई मिल जाते हैं सुख के
पर खुलता कोई नहीं है
किसी ने सही कहा था,
ज़िन्दगी गुलाबों की शैया नहीं
दुनिया दुखों का सागर है...!!!

24 comments:

  1. Nehaa:):)

    Nice,but sharma ji you r best when sweet emotions flow through your words:):)

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  2. लिंक तो कई मिल जाते हैं सुख के
    पर खुलता कोई नहीं है
    किसी ने सही कहा था,
    ज़िन्दगी गुलाबों की शैया नहीं
    दुनिया दुखों का सागर है...!!!

    सबके मन की बात कह दी है ...

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  3. दिल खुश करने वाली रचना।

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  4. बहुत सहज सरल ढंग से जिंदगी का फलसफा बता रही है आपकी सुन्दर रचना.....

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  5. देवेन्द्र जी आपकी बेहतरीन क्षणिकाएं पढ़ी थी एक बार .....
    आपसे अनुरोध है अपनी १०,१२ क्षणिकाएं सरस्वाती-सुमन पत्रिका के लिए भेजें ....
    साथ में अपना संक्षिप्त परिचय और छाया चित्र भी ....
    इस पते पर या मेल करें .....

    Harkirat 'heer'
    18 east lane , sunderpur
    house no. 5
    Guwahati-871005

    harkiratheer@yahoo.in

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  6. वाह साहब वाह..
    इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
    कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ.

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  7. अपने दुखों का राग अलापता हूँ
    सब कान बंद कर लेते हैं
    इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
    कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ.
    kamaal ke halat hain sukh bhi google per

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  8. इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
    कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ.

    लिंक तो कई मिल जाते हैं सुख के
    पर खुलता कोई नहीं है

    ...वाह! क्या बात है.
    ऐसे ही तो हो गए हैं आज हम इस हाई टेक दुनिया में !
    अच्छी कविता.

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  9. वाह! बहुत सुन्दर.नकारात्मक से भी सकारात्मकता सीख.
    आप मेरे ब्लॉग पर आये ,इसके लिए बहुत बहुत आभार जी
    कृपया, प्रेम बनाये रखियेगा.

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  10. मजा आ गया पढकर. वैसे कहते हैं.सुख दुःख सब मन की बातें हैं.

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  11. अपने दुखों का राग अलापता हूँ
    सब कान बंद कर लेते हैं
    इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
    कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ.

    बहुत ही सीधे सादे ढंग से मन की बात कह दी आपने..बहुत अच्छी और सच्ची रचना....

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  12. बचपन में पढने का दुःख था
    अब नौकरी का दुःख है
    दफ्तर में बॉस का दुःख है
    घर में बीवी का दुःख है
    दोस्तों में बीमा करने वालो का दुःख है
    बाहर निकलो तो दुकानदारों का दुःख है...
    बहुत सुन्दरता से आपने ज़िन्दगी की सच्चाई को शब्दों में पिरोया है! लाजवाब रचना! उम्दा प्रस्तुती!

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  13. सोता हूँ तो नींद नहीं आती
    चादर हटाता हूँ तो मछर काटते हैं
    ओढ़ता हूँ तो गर्मी लगती है
    स्विच दबाता हूँ, बिजली चली जाती है.

    बहुत सही कहा है आपने .

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  14. आपकी रचना पढ़कर बस मै तो यहीं कहूँगी,
    शायद सुख की खोज हम गलत जगहों पर
    कर रहे है गूगल में तो शिवाय विक्षिप्त होने के आलावा
    कुछ नहीं मिलेगा हाँ सिर्फ जानकारी मिल सकती है !
    शायद खोज की दिशा बदलनी जरुरी है !

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  15. दिल खुश करने वाली रचना। धन्यवाद|

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  16. ज़िन्दगी गुलाबों की शैया नहीं
    दुनिया दुखों का सागर है...!!!

    don't be so much pessimistic bhai.

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  17. ye jeevan hai is jeevan ka yahi hai rang roop ,sabki kahdi apne jariye se ,bahut badhiya likha hai ,

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  18. online hovo to inki rachnaye padhne ka dukh hai :-)

    just kidding bro.....

    great going...thx

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  19. अपने दुखों का राग अलापता हूँ
    सब कान बंद कर लेते हैं
    इन्तहां तो अब हो गई है पागलपन की
    कि सुख को गूगल में सर्च करता हूँ................

    bahut khub....

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  20. लिंक तो कई मिल जाते हैं सुख के
    पर खुलता कोई नहीं है
    किसी ने सही कहा था,
    ज़िन्दगी गुलाबों की शैया नहीं
    दुनिया दुखों का सागर है...!!!

    लाजवाब रचना

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  21. सी यस देवेन्द्र के शर्मा जी बहुत ही सुन्दर रचना है अक्सर ये होता रहता है -जिन्दगी में एक एक घटनाएँ जैसे आप के साथ घटी हों -और कुछ कल्पनाएँ उन्ही के सहारे मिली - आइये इन सब से उबरें और जिन्दगी को धनात्मक दिशा की ओर ले चलें -
    जहाँ नदिया है
    भंवर है
    पर एक किनारा है
    -जहाँ शून्य है
    आकाश गंगा है
    पर चाँद
    एक प्यारा सा तारा है
    शुक्ल भ्रमर ५

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  22. sharma jee sabka apna najariya hai....waise aadmi dukho aur kathinaiyo se hi seekhta hai...but ur observation is quit right!!!

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  23. sharma ji....well said ...shukho ko google me dhundta hu....aapki chutili shaili ne to kavita me kayamat laa di...likhte rahiye..... Inderjeet

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