माँ कितना विस्तृत शब्द
अपने आप में एक ब्रह्माण्ड
क्या ब्रह्मा, विष्णु, महेश
इससे बड़े हो सकते हैं ?
तुमने ही किया सृजन
ऊँगली पकड़ चलना सिखाया
तुतला कर बोलना सिखाया
खाना भी तो तुम ही से सीखा
उंगलियाँ काट काट कर.
तुम मेरी हर इच्छा को
बिना कहे समझ जाती थी
मेरी हर बुराई का
तुमने ही संहार किया
डांट कर या पीट कर
वो भी तो कितना सुखद था.
मैंने तो तुम में ही
देखा है न
सृजन, पालन और निर्वाण
तो क्यूँ मानू मैं?
अदृश्य ईश्वर को,
जब तुम साक्षात हो.
अब कुछ बदल सा गया है न
तुम मुझे पीटती भी नहीं हो
डांटती भी कम हो
क्या इसलिए कि?
मैं अब तीन महीने में
घर आता हूँ??
या इसलिए कि
अब सत्ताईस का हो गया हूँ!.
क्या सत्ताईस का होना
इतना बड़ा माना जाता है कि,
तुम मेरा विवाह करके
मेरे बड़े होने का
प्रमाण देना चाहती हो!
फिर तो तुम्हारा डांटना
और भी कम हो जायेगा ना
फिर क्या फायदा?
ऐसे नए बंधन का जो
मुझसे मेरा बचपन छीन ले!
ईश्वर से बस एक ही
प्रार्थना करता हूँ
हे ईश्वर, तू जिस रूप में
मेरे समक्ष है
बने रहना
मुझे कभी
बड़ा मत होने देना...
माँ के प्रति प्यार ....झलकता है आपकी कविता में ....आभार
ReplyDeletemaa ko samarpit khubsurat rachna...
ReplyDeleteब्रह्मा, विष्णु, महेश माँ से बड़े ? ना , उनकी माँ भी तो हैं .... सृजन, पालन और निर्वाण माँ से ही है , वह धरती बनती है और आकाश देती है ....
ReplyDeleteअब कुछ बदल सा गया है न
तुम मुझे पीटती भी नहीं हो
डांटती भी कम हो
क्या इसलिए कि?
मैं अब तीन महीने में
घर आता हूँ??
हाँ यह अंतर तो आ जाता है, पर एक एक इंतज़ार , एक एक मनुहार में माँ का प्यार होता है .
क्या सत्ताईस का होना
इतना बड़ा माना जाता है कि,
तुम मेरा विवाह करके
मेरे बड़े होने का
प्रमाण देना चाहती हो!..... नहीं , जीवन के दूसरे मायने भी देना चाहती है माँ , खुद सी एक और पहचान घर में अंकित करना चाहती है .
ईश्वर से बस एक ही
प्रार्थना करता हूँ
हे ईश्वर, तू जिस रूप में
मेरे समक्ष है
बने रहना
मुझे कभी
बड़ा मत होने देना...
माँ की निगाहों में नन्हें कदम बड़े नहीं होते, तोतली पुकार भी आँचल में सिमटी होती है
माँ का महत्त्व कभी कम नहीं होता...माँ के कर्त्तव्य में यह भी है कि तब तक उंगली पकडे जब तक चलना न सीखें...जब सीख जाए तो वो छोड़ दे...जहां लड्खडाये ...वहाँ मौजूद रहे संभालने के लिए...
ReplyDeleteअच्छी रचना ....माँ के लिए हम बच्चे ही रहते हैं ...कभी बड़े नहीं होते
beautiful post. THis poem touched my heart,
ReplyDeleteexcellent write!
सुन्दर रचना!
ReplyDeleteममतामयी माँ को नमन!
mamtamayi rachna.
ReplyDeleteहे ईश्वर, तू जिस रूप में
ReplyDeleteमेरे समक्ष है
बने रहना
मुझे कभी
बड़ा मत होने देना...
Bahut hi Sunder likha hai....behtreen
.
ReplyDeleteप्रिय बंधुवर CS देवेन्द्र जी
"Man without Brain"
स्नेह … !
हे ईश्वर, तू जिस रूप में
मेरे समक्ष है
बने रहना
मुझे कभी
बड़ा मत होने देना...
लिखते तो अच्छा हो ही … भावपूर्ण !
…लेकिन
# हम स्वयं दादा-नाना बन कर भी , सौ साल के हो'कर भी माता-पिता से तो बड़े नहीं बन जाते …
# आप हमारे लिए भी पार्टी-शार्टी का बंदोबस्त होने दें :)
विवाह की शुभ घड़ी जल्द आने दें … :))
अग्रिम बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
aadarniya prabha madam ne maan ka behtareen pratinidhitwa kiya.....haardik aabhar...
ReplyDeleteaadarniye bhrata swarnkaar ji, vaada to hame aapse chahiye saumya upasthiti aur aashirwaad ka....vaise abhi samay hai....
sabhi pathak gano ka aabhar.....
awesome creation..
ReplyDeletesimply fantastic... Mommy rocks everywhere :)
as usual again a beautiful creation by you......
ReplyDeletebeautifull lines for the most beautiful person on this earth......"MAA"
आमीन ..सुन्दर रचना
ReplyDeletepyari maa tere kitne roop:)
ReplyDeletebahut pyari si rachna...!