हम दावा करते हैं
ग्लोबल होने का
बड़ी बड़ी बातें करते हैं
देश की विदेश की
विश्वस्तरीय भाषा
सभ्यता और संस्कृति की.
बताते हैं अनेकता में एकता
राष्ट्रीय एकता.
परन्तु यथार्थ में
होने के बावजूद,
इक्कीसवीं सदी के
नाम जताने के पश्चात
अक्सर यही प्रश्न होते हैं
किस जाति के हो?
किस धर्म के हो?
किस राज्य के हो???
आपके प्रश्न सार्थक और विचारणीय हैं.
ReplyDeleteराष्ट्रीय एकता के सही मायने समझने होंगें
हम सभी को.
बहुत दिनों से आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आयें हैं.
समय मिलने पर दर्शन दीजियेगा.
बढ़िया कविता.... विचारनीय प्रश्न
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ||
ReplyDeleteखूबसूरत प्रस्तुति ||
सही कहा ..बिलकुल .
ReplyDeleteयही तो विडम्बना है!
ReplyDeleteहाँ टूटा हुआ तो यह पूरा संसार है... शायद महा-प्रलय में ही एक होंगे...
ReplyDeleteशुभकामनाये बृहद सोच को समेटने के लियी ,
ReplyDelete" बदल जाएगी धरा अगर तुम खड़े हो गए......"
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ReplyDeleteनाम जताने के पश्चात
ReplyDeleteअक्सर यही प्रश्न होते हैं
किस जाति के हो?
किस धर्म के हो?
किस राज्य के हो???.......
Exactly we behave like educated-illiterates :D
Nice read.
♥
ReplyDeleteसच है , इन प्रश्नों पर अच्छा प्रश्न उठाया आपने …
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
need to ask to know that .............
ReplyDeleteEktaa badhi ki nahi badhi AUR badhi to kiske saath badhi hai :-)
kuch baat to hogi akhir in savalon m bhi ..
ReplyDeleteनाम जताने के पश्चात
अक्सर यही प्रश्न होते हैं
किस जाति के हो?
किस धर्म के हो?
किस राज्य के हो???.......
शायद यह मूलभूत स्वाभाव का हिस्सा है कि ये प्रश्न अनायास उठ जाते है... निश्चित ही स्थिति बदलनी चाहिए... हमारी सोच का दायरा वृहद होना चाहिए!
ReplyDeletebahut achha kaha aapne :)
ReplyDeleteIts great
ReplyDeleteKya bakwas kavita hai . Isko koi kavita kayese kah sakte hai .
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