मचा हुआ है देश में हर तरफ हाहाकर
फिर भी यहाँ पर हो रही उनकी जय जयकार.
लूटने वाले लूट रहे
हा हा करके हंस रहे
वस्तुओं के दाम बढे, रूपए का मूल्य गिरा
इधर निफ्टी और सेंसेस, उधर उनका चरित्र गिरा.
खेल लुटे, संचार लुटे, और लुटी संपदा अपार
उनका मकसद एक रहा, करना पुरखों का प्रचार.
किसी को रोटी-कपडा मिले न मिले, क्या करना है
चार दिन का मौका है, लूट घर को भरना है.
'फ़ूड सिक्यूरिटी' में रोटी देकर, टैक्स के नाम पर छीन लेंगे
अपनी तो जेबें खाली हैं कहकर, विदेशों से भीख लेंगे.
बाहर निकलो तो आम आदमी को, मुंह छुपाना पड़ता है
खुदखुशी करना गुनाह है, बस इसलिए जीना पड़ता है!!!
फिर भी यहाँ पर हो रही उनकी जय जयकार.
लूटने वाले लूट रहे
हा हा करके हंस रहे
वस्तुओं के दाम बढे, रूपए का मूल्य गिरा
इधर निफ्टी और सेंसेस, उधर उनका चरित्र गिरा.
खेल लुटे, संचार लुटे, और लुटी संपदा अपार
उनका मकसद एक रहा, करना पुरखों का प्रचार.
किसी को रोटी-कपडा मिले न मिले, क्या करना है
चार दिन का मौका है, लूट घर को भरना है.
'फ़ूड सिक्यूरिटी' में रोटी देकर, टैक्स के नाम पर छीन लेंगे
अपनी तो जेबें खाली हैं कहकर, विदेशों से भीख लेंगे.
बाहर निकलो तो आम आदमी को, मुंह छुपाना पड़ता है
खुदखुशी करना गुनाह है, बस इसलिए जीना पड़ता है!!!
सार्थक व्यंग्य
ReplyDeleteaaj ke haalaton par prahar karti sateek rachna.
ReplyDeleteWell said,well said.
ReplyDeleteखुदखुशी करना गुनाह है, बस इसलिए जीना पड़ता है!!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर......शीर्षक और सच्चाई को सार्थक करती पंक्ति!!:)
आभार
जीना पड़ता है....
ReplyDeleteआपने यथार्थ का बहुत सच्चाई से बयान किया है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपको मेरे ब्लॉग पर आये काफी समय हो गया है.
आपका दिल से इंतजार करता हूँ,शर्मा जी.
आपकी उपस्थिति का यही तो कमाल है.
अबकी बार आपको हनुमान जी भी याद करते हैं.