Wednesday, December 28, 2011

चाय

चाय तुम रंग रंगीली छैल छबीली हसीना हो
सच पूछो तो आयातित, विलायती नगीना हो.

तुम्हें पीकर मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है
होठों से छूते ही दर्द सारा मिट जाता है.

स्वाद में कुछ मीठी, कुछ कसैली लगती हो
रंग तुम्हारा भूरा, करिश्मा जैसी दिखती हो

हर घर, होटल, सड़क में बस तुम्हारा ही बसेरा है
पीने वाले नतमस्तक, सब पर हक़ तुम्हारा है.

जो तुम्हें स्पर्श करे, वो तुम्हारा महत्व जाने
वरना अदरक का स्वाद बन्दर क्या पहचाने.

अब मैं कोई गीत, कहानी या कविता नहीं कह पाता हूँ
हर पन्ने-पन्ने पर शब्द-शब्द में तेरी महिमा लिखता हूँ.

:) :) :)

11 comments:

  1. चाय की महिमा निराली ...सुंदर

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  2. चाय को कविता के ज़रिये महिमा मंडित होते हुए पहली बार देखा .बहुत खूब.

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  3. वाह! री चाय.
    देवेन्द्र जी तो आपके इतने गुण गायें.

    फिर क्यूँ न यह हर किसी को भाये.

    मेरे ब्लॉग पर आकर आपने सुन्दर सुवचनों
    से मेरा मनोबल बढ़ाया,इसके लिए बहुत बहुत आभार
    आपका.

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  4. चाय पर इतनी सुन्दर कविता ..बहुत खूब

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  5. अब मैं कोई गीत, कहानी या कविता नहीं कह पाता हूँ
    हर पन्ने-पन्ने पर शब्द-शब्द में तेरी महिमा लिखता हूँ.
    waah chay

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  6. अब मैं कोई गीत, कहानी या कविता नहीं कह पाता हूँ
    हर पन्ने-पन्ने पर शब्द-शब्द में तेरी महिमा लिखता हूँ.

    बहुत ही सुंदर पंक्तियों क साथ चाय की विदाई दी आपने
    पर कुछ ज्यादा नहीं बस इतना की आज चाय का रंग थोडा चढ़ कर आएगा आपकी कविता के बाद

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  7. बहुत खूब! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  8. नव वर्ष पर सार्थक रचना...
    .......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  9. kya baat hai bhai...
    kuch kr ke manoge
    and thanks www.pksharma2.blogspot.com

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  10. देवेन्द्र जी आपका मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-३'
    पर इन्तजार है.

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