Saturday, March 17, 2012

यथार्थ अमरत्व उपदेश


सर्व विदित है
इस मृत्यु लोक से
निश्चित है पलायन
सबका एक दिन.


भौतिक स्वरुप को
होना ही है ख़ाक
वही बनना और बिगड़ना
हो जाना फिर शून्य में विलीन.

यद्यपि शून्य जीवित रहेगा सर्वदा
और है भी
अनादि से अनंत तक.


इसी में गूंजती रहेगी
हमारी कर्म ध्वनियाँ
आचरण, सदोपदेश, विचार
अभिव्यक्तियाँ और सिद्धांत
शून्य के रहने तक.


स्पष्ट है ये आज भी अमूर्त है
और जो अमूर्त है अमृत्य भी.


इसीलिए, जगदगुरु श्री कृष्ण ने भी
यथार्थ सन्देश में कहा था
कर्म करो-फल की इच्छा नहीं.


कारण भी सुस्पष्ट है
फल या परिणाम नश्वर है
और कर्म, आत्मा की तरह ही 
मरता नहीं कभी.


अनंत कारण बनते रहते हैं
परिणाम मगर बनता और मरता रहता है
और युग युग में बदलता जाता है
विज्ञान भी.


कर्म ही कारण है
कारण ही अमरत्व है
और गीता का
यथार्थ उपदेश भी.....