हर कली महकती है हर फूल खिलता है
तकदीर पर नाज़ करती हर फिजा....
तेरे शहर में.....!!!
तेरे घर जाती है जो गली, बड़ी अजीब है
ढूँढता हूं तुझे, पर खुद खो जाता हूं.....
तेरे शहर में.......!!!
तेरी छत का दिया, दूर से बुझा बुझा सा दिखता है
उसे जलाने की कोशिश में, हाथ जला लेता हूं....
तेरे शहर में........!!!
तेरी शौख अदाएं, अल्हड़पन, हैं सुर्ख़ियों में है हर तरफ
अखबार की खबर मुझसे कोई चुरा लेता है.....
तेरे शहर में..........!!!
कोई वादा करता है, ये निभाता है वो भुलाता है
वादों के सौदागर हैं बहुत......
तेरे शहर में........!!!
कभी सताते हैं कभी बुलाते हैं तेरे चाहने वाले
मैं तेरे पहलू में आके रो देना चाहता हूं......
तेरे शहर में........!!!
तेरा तो मुझे नहीं पता मगर इतना जानता हूं
बेवफाओं की कमी नहीं है.........
तेरे शहर में..........!!!
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteपर यह तो सब शहर में है ...
बहुत बेहतरीन...ईमेल भी मिल गया था भीड़ के साथ..हा हा!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteदेवेन्द्रजी
ReplyDeleteराजेन्द्र का नमस्कार स्वीकार करें ।
बहुत अच्छी भाव भरी रचना लिखी है आपने!
तेरे घर जाती है जो गली, बड़ी अजीब है
ढूँढता हूं तुझे, पर खुद खो जाता हूं.....
तेरे शहर में.......!!!
तेरी छत का दिया, दूर से बुझा बुझा सा दिखता है
उसे जलाने की कोशिश में, हाथ जला लेता हूं....
तेरे शहर में........!!!
बधाई और मंगलकामनाएं !
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , समय मिले तो आइएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत ही सूपर लगी ये कविता। बहुत ही अच्छा।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteढूंढता हूँ तुझे पर खुद खो जाता हूँ ......
ReplyDeleteइन शब्दों ने खास प्रभावित किया
वैसे तो हर पंक्ति सधी हुई है।
बधाई.
सुंदर रचना
ReplyDeleteHi...Ek purana sher yaad aa raha hai...
ReplyDeleteKal dekh kar chhupte the, ab dekhete hain chhupkar...
Wo daure bachpan tha...ye daure jawani hai...
To Devendra bhai...
Sab kuchh hi ab to, hara aayega nazar..
ye yaar-e-shahar ki, hariyali ka hai asar...
Sundar gazal...
Deepak...