Friday, March 26, 2010

रिश्तों की परिभाषा

भ्रम में है ये दुनिया
बांटती रहती है ज्ञान
ब्रह्म, धर्म और कर्म का
पर न कर पाई है
सदियों बाद भी
परिभाषित
रिश्तों को.

सीमित कर लेती है
माता-पिता, भाई-बहिन
पति-पत्नी या दोस्त जैसे
प्राकृतिक बन्धनों तक ही
रिश्तों को.

वरना क्या नहीं होता?
रिश्ता,
पेड़ और छांव का
तारों और ग्रहों का
ग्रहों और उपग्रहों का
नदिया और किनारों का
जो निभाते चले आ रहे हैं
सृष्टि के सृजन से
और निभाएंगे भी
निर्वाण तक
रिश्तों को.

रिश्ता तो होता है
दुश्मनों के बीच भी
"दुश्मनी" का!
फिर क्यूँ न जोड़ें हम
भावनाओं और संवेदनाओं से भी
रिश्तों को?

और बना लें
"वसुधा-एव-कुटुम्बकम" को ही
रिश्तों की परिभाषा!!!

8 comments:

  1. क्या नहीं होता?
    रिश्ता,
    पेड़ और छांव का
    तारों और ग्रहों का
    ग्रहों और उपग्रहों का
    नदिया और किनारों का
    जो निभाते चले आ रहे हैं
    सृष्टि के सृजन से
    और निभाएंगे भी
    निर्वाण तक
    रिश्तों को.
    waah, sakaratmak drishtikon

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  2. फिर क्यूँ न जोड़ें हम
    भावनाओं और संवेदनाओं से भी
    रिश्तों को?

    इतनी कम उम्र में इतनी परिपक्व रचना ......??

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  3. हीर जी ने सही कहा है - हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. aadarniya prabhaji, heerji aur kaushikji...rachna rachna to mujhe nai aata bas kabhi kabhi bhawnao ko moort roop dena ka prayas kar leta hu.......magar ha, magar ha ap sabka aashirwad aur prerna milti rahi to jarur sikh jaunga...

    bahut bahut aabhar

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  5. बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने रिश्तों की परिभाषा को बखूबी शब्दों में पिरोया है जो काबिले तारीफ़ है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

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  6. aaj kal ki bhagam bhaag ki zindgi me kiske paas time he apne colse relations ko nibhane ka bhi. lekin pal bhar ko bhi agar ham soche ki ye nature ye abhamandal ye surye-chandrama-prithvi-greh apne rishte nibhaana chhod de to pura brahamaand hi hil jayega.....bahut gehri soch se sawri apki rachna bahut acchhi he.

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  7. जय श्री कृष्ण..आपको बधाई ....आपने बेहद खुबसूरत कवितायेँ लिखी हैं....मन को छू देने वाली....सरल और सहज.....हांजी हमने बधाई देने में बहुत देर कर दी...और आपका आभार...बस इसी प्रकार अपनी दुआएं साथ रखियेगा.....हम और ज्यादा अच्छा और दिल से लिखने का प्रयास करते रहेंगे....!!!!
    ---डिम्पल

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  8. सुन्दर रचना...
    ---हां रिश्ते तो प्राक्रतिक ही होते हैं...भावनायें व संवेद्नायें भी प्राक्रतिक ही हैं...और ग्यान, ब्रह्म, कर्म और धर्म सभी रिश्तों को परिभाषित करने के लिये ही है....उसके द्वारा सारे रिश्ते परिभाषित किये गये हैं आवश्यकता है उचित भाव से जानने की....

    --"दुर्भाग्य से एल एल बी अधूरा छूट गया"----कहना चाहिये ईश्वरेच्छा से ... भाग्य-दुर्भाग्य कमजोर लोगों के कथन हैं...

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