अपनी रफ़्तार से
वह न कभी हांफता है
न कभी सुस्ताता.
पर दुनिया दौड़ती है
उसी के पीछे
सोचती है की हरा देगी
वक्त की गति को भी
और फिर हार जाती है
खुद दुनिया
और मनाने लग जाती है
शोक
किसी और के निकल जाने का
खुद से भी आगे
मैं भी दौड़ा कुछ घडियों तक
फिर थका, हारा और बैठ गया
सुस्ताकर किसी रूखे वृक्ष के नीचे
कुछ आंसू भी बहाए
पर वो भी रुसवा हो गए
कुछ लम्हों के बाद
फिर भी मैं चला
चंद कदम और
पर शाम की दस्तक
और बुझती रौशनी में
मेरा साया भी
छोड़ गया साथ
वक्त चलता रहा अपनी गति से
अकेला
मैं कभी दौड़ा कभी चला
कभी हमसफ़र मिले कभी बिछड़े
कुछ हँसे, कुछ रोये और सिसके
जब इस दौड़ में सिर्फ
खोना, पाना और फिर खोना ही है
तो फिर क्यूँ मनाया जाये
बरबादियों का
शोक!!!
कृति: देवेन्द्र शर्मा (कंपनी सचिव)
deven238cs@gmail.com
दिनांक: 07.01.2010
Most true things are told in a great manner in these quotes
ReplyDeletewah kay andaze bayan he... really u are reflecting the true power of time in ur poem its message conveying..
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