Saturday, May 28, 2011

उसका क्या दोष था????

(तस्वीरों के लिए गूगल का आभार)

सावन का महीना अपने पूर्ण यौवन पे था. चहुँ दिशाओं में बस उसी का वर्चस्व. कहीं बादलों की गडगडाहट कहीं बिजली की कड़कडाहत . कहीं रिमझिम टपकती कहीं झमाझम इतराती बारिश की बूंदें. समंदर भी उमड़ उमड़ कर अंगडाइयां लेता हुआ. उसकी कोई एक अंगडाई बदली बनकर निकली, अपने अन्दर विशाल जल समाये हुए. बदली उडती रहे अपने गंतव्य की तरफ यह जाने बिना की आखिर उसकी मंजिल कहाँ है...बादलो के मेले से गुजरते गुजरते उसने एक छोटी बदली को जन्म दिया. दोनों साथ साथ उडती रहीं. छोटी बदली जो यह सब परिदृश्य पहली बार देख रही थी, अचंभित थी. उसे उड़ने में बड़ा मज़ा आ रहा था. कभी किसी छोटे बदल से टकरा लेती, कभी बड़ी बदली का हाथ पकड़कर लटक लेती. कभी दुसरे बादलों पर चढ़कर गुजरती कभी घने बादलों के रंग में रंगने का उसका भी मन करता. एक दिन बड़ी बदली से उसने खुद भी बरसने की इच्छा जाहिर की.
बड़ी बदली ने थोडा सा पानी अपने अन्दर से खुश करने के लिए दे दिया. अब छोटी बदली थोडा सा जल खुद में सहेजे हुए खुश... अब तो मानो उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही ना रहा.. वो उडती चली जाती. कभी सरसर हवाएं उसे गुदगुदाती, कभी दूसरी छोटी बदलियों के सात आँख मिचौली खेलती. बादलों के बड़े समूह में एक छोटी सी बदली होने के कारण उसे सबका प्यार मिल रहा था. बादलों की टक्कर और कडकती बिजलियाँ देखकर उसे अभूतपूर्व रोमांच का अनुभव हो रहा था. खुली हवा में तेरते तेरते उसका भी बरसने का बहुत मन करने लगा. बरसने की इच्छा के कारण उसका पूरा शरीर श्यामवर्णीय  होकर वर्षामय हो गया. परन्तु वह भ्रम में थी की आखिर कहा बरसा जाए?? वह अपनी पहली बरसात व्यर्थ न जाने देना चाहती थी. उसने बड़ी बदली से कहा की मैं कहा बरसूँ, जहां मेरे बरसने का कोई मूल्य हो. कोई  ऐसी जगह बताओ जहां पानी बरसाकर मुझे आनंद आये और वहा के बाशिंदों को मेरे साथ झूमने का हर्ष हो. मुझे इसी जगह बताओ जहां काफी समय से बरसात नहीं हुई हो.

बड़ी बदली उसके प्रश्नों और विचारों से अचंभित थी. आखिर उसने तो कभी इतना बड़ा सोचा नहीं था. बोली-कहीं भी बरसले जहां तुझे अच्छा लगे पर ज़रा आना ख्याल रखना. फिर भी अगर चाहे तो राजस्थान में तुझे मूल्यवान समझा जाएगा. वहाँ थार के रेगिस्तान में तो काफी बरसों से बरसात नहीं हुई. वैसे तो पूरा भारत ही आज पानी की समस्या से जूझ रहा है.

अब छोटी बदली ने निर्णय लिया की इस बार थार के रेगिस्तान में ही बरसना है. वहा भी खुशहाली लानी है. बड़ी बदली ने समझाया की नहीं, रेगिस्तान की राह आसान नहीं है. तुझसे पहले भी कई बदलियों ने चाहा था लेकिन किसी का भी साहस नहीं हुआ.. परन्तु छोटी बदली ज़रा जिद्दी स्वभाव की थी. उसने तो बस मन मर्ज़ी से उड़ना शुरू कर दिया. बड़ी बदली भी उसके पीछे पीछे चल दी. बस अब रेगिस्तान की ओर यात्रा...आसमान साफ़...दोनों खुले खुले से तैरती थार के पास पहुँचने वाली थी. छोटी बदली के चेहरे पर थकान के बावजूद कोई शिकन तक न थी. वो तो बस अपना बासंती नृत्य कर लेना चाहती थी.

थार का रेगिस्तान थका, हारा , टूटा हुआ सा, उपेक्षा का शिकार, अपने भाग्य को कोसता हुआ बस आँखे  मूंदे  कराह रहा था. बरसों की प्यास से सूख चुका उसका गला बस दो शब्द कह  पा रहा था.....पानी!!...पानी...!! पानी...!! उसे और कोई होश नहीं.

बदलियों के उसके करीब पहुँचने पर  सूरज की धूप को चीरती हुई उनकी छाया थार की आँखों पर कुछ क्षणों के लिए पड़ी. उसकी पलकें तुरंत खुली और देखकर उसे अपार आश्चर्य हुआ  की दो दो बदलियाँ..! और आज रेगिस्तान में...!!! और वो भी पानी के साथ...! कहीं ये सपना तो नहीं...? मैं होश में तो हूँ?? अपने आपसे प्रश्न करता रहा. लेकिन बदलियों की चहल कदमी और धूप छावं का खेल देख उसे काफी आनंद का अनुभव हुआ और जागते स्वप्न देखने लगा....अहा..!!! कितना सुखद क्षण होगा जब ये बदलियाँ मुझ पर झूम झूम कर बरसेंगी. मेरी बरसों की प्यास बुझ जाएगी.... मैं काफी सारा पानी खुद में सहेज कर रख लूँगा. ...अब मुझ पर भी हरियाली होगी.... कोई मेरी उपेक्षा नहीं करेगा.... वो सपनो के महल चुने जा रहा था...

छोटी बदली बड़ी उत्सुकता से वहाँ  पहुची. लेकिन तपती धूप और रेगिस्तान की गर्मी से उसे काफी असहज महसूस होने लगा... गरम बालू  की उडती धूल उसकी आँखें खुजाने लगीं. .उसका शरीर धीरे धीरे जलने लगा...वो तड़पने लगी....इधर उधर दौड़ी की कहीं कोई पेड़ मिल जाए... लेकिन दूर दूर तक कोई पेड़  का नामो निशाँ तक नहीं....बस मतिभ्रम पैदा करती बालू रेत के जर्रों ने अपने महल बना रखे थे....यहाँ से वापस लौटना भी अब उसके लिए नामुमकिन था....बस वह छटपटा रही थी..... कराहों के साथ साथ उसका पानी भी सूखता गया. ...बड़ी बदली व्याकुल हो उठी....उसे बचाने के लिए अपना पानी देती रही....लेकिन इतनी सूखी तेज आग जैसी गर्मी को सहना छोटी बदली के लिए अब संभव नहीं था. कुछ ही क्षणों में उसने दम तोड़ दिया.... बड़ी बदली के पास भी अब सूखे आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं था..... रेगिस्तान का ऐसी विडंबना पर वापस टूटकर मुरझाया हुआ चेहरा देखकर लौटते हुए बस सिर्फ कुछ शब्द कह पाई- "जहाँ कोई पेड़ ही न हो, कोई चाहकर भी क्यूँ बरस पाएगा भला"???? रेगिस्तान बोला-"इसमें मेरा क्या दोष था"??? बदली बोली-"इसमें उसका भी क्या दोष था"....???

16 comments:

  1. पर्यावरण के बहाने आपने न सिर्फ पेड़ों के संरक्षण का संकेत दिया है बल्कि इस कहानी का फ़लक आम आदमी की ज़िंदगी की जद्दोजहद की तस्वीर भी साफ़ दिखा रहा है.वाह .बधाई इस उत्कृष्ट लेखन की.

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  2. देवेन्द्र जी,

    आप ने इतनी सुन्दरता से लिखा है या आपकी प्रस्तुति है, ये समझ नै आया हमे पर हाँ,हमे आपकी कहानी पढ़ते हुए ऐसा लगा जैसे हम प्रत्यक्ष रूप में उस छोटी बदली :) के साथ उड़ रहे हैं और जहाँ जहाँ आप ले गए हम वहां वहां हो कर आये हों.....
    बहुत उम्दा चित्रण और भाव

    -नेहा त्रिवेदी :)

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  3. very beautiful expressions throughout the storyline. And you have pointed out an issue which is of vital importance.
    Kudos to you for that !!!

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  4. प्रिय श्रीशर्मासाहब,

    इतनी सूखी तेज आग जैसी गर्मी को सहना छोटी बदली के लिए अब संभव नहीं था. कुछ ही क्षणों में उसने दम तोड़ दिया.

    बहुत खूब,बधाई है।

    मार्कण्ड दवे।
    http://mktvfilms.blogspot.com

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  5. अच्छी प्रतीकात्मक कहानी।
    शुभकामनाएं।

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  6. a very sweet story.......2good.
    -mani.

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  7. बहुत सुन्दर लिखा है आपने,
    - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  8. बहुत ही सुन्दर एवं प्रतीकात्मक......

    धन्यवाद

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  9. शुरू में छोटी सी बदली की ख्वाहिश बड़ी ही मासूम थी , एक मासूम उम्र सूरज से होड़ लेने की क्षमता रखता है , इस बात
    से अनजान कि वह झुलस जायेगा ! अनुभव औरों के भी उसे तब रास नहीं आते , क्योंकि जुबां हमेशा अपने छालों
    की होती है और परिवर्तन वहीँ है --- गुरु वहीँ ब्रह्म वहीँ ज्ञान का विस्तार वहीँ !
    छोटी सी बदली ने जो भी चाहा वह गलत नहीं था , बस उसे पहचान नहीं थी - रेगिस्तान को भी उम्मीद थी खुद से निजात
    पाने की , वह स्वयं तक केन्द्रित था , स्वयं की अभिलाषा में था .... पर गलत नहीं था .
    कई बार समय की सीख के आगे कोई गलत नहीं होता ...
    हाँ यह कहानी पर्यावरण की तरफ भी इशारा करती है ... वृक्षारोपण ज़रूरी है ताकि अगली उड़ान में बदली दम न तोड़े

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  10. देवेन्द्र जी,
    सुन्दरता से लिखा है ....पेड़ों के संरक्षण का बहुत उम्दा चित्रण

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  11. दोष तो हम इंसानों का है जिन्होंने पेड़ों को काट-काट कर पृथ्वी पर तबाही मचाई है..
    पर रेगिस्तान पर किसी का जोर नहीं है.. प्रकृति के आगे सब नतमस्तक हैं...

    सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

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  12. आपकी बहुत अच्छी कहानी जिसे प्रतीकात्मक कहें तो ज्यादा सही होगा.

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  13. Badli ko talash thi kisi ki pyas bujhaane ki
    Registhaan ko aas thi paani se tript ho jaane ki
    Bhul kar baithe the dono na jaane kis khumari me
    un ko khabar nahi thi jamaane ke fasaane ki

    Jitendra

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