Sunday, October 23, 2011

फेसबुक न होता तो क्या होता

फेसबुक न होता तो क्या होता
मेरी सारी बकवास कौन सुनता
मन की भड़ास कौन झेलता
अच्छी बातें तो सब पसंद करते हैं
पर मेरे बासी शेरों पर वाह वाह कौन करता
फेसबुक न होता तो क्या होता....

अकेले पन में साथ कौन होता
भूख लगी, नींद नहीं, चाय पीनी है
ये फ़ालतू status कोई कैसे डालता 
दुसरे की महिला मित्रों के चित्र like कौन करता 
फेसबुक न होता तो क्या होता....

हीरा तो खुद चमक लेता है मगर
झंडू जैसी सूरतों को gorgeous कौन कहता
सुख में तो सब साथी होते किन्तु
दुःख बांटने वाला साथी कौन होता
फेसबुक न होता तो क्या होता....

नेकी कर फेसबुक में डाल कहावत
चरितार्थ कोई कैसे करता
सिर्फ प्रस्ताव स्वीकृति सिद्धांत पर
दोस्ती के मापदंड कौन तय करता
फेसबुक न होता तो क्या होता......

जिनमे दम और व्यक्तित्व है
वो तो बुक्स में फेस छपवा लेते
पर जो अक्ल से श्री शर्मा की तरह पैदल हैं
बेचारे उनका अपना क्या होता
प्रभु, ये फेसबुक न होता तो क्या होता......:):)



Friday, October 14, 2011

तुम आना मत भूलना


तुम इतनी कठोर 
कब से हो गई हो
कि जाने के बाद
नहीं देखती 
मुडकर भी!

एक तो वो दिन था
कि तुम एक पल के लिए भी
नहीं होना चाहती थी दूर
समय के लिए सचेत करती थी
कि फिर मिलना है
अल सुबह दस बजे.

और बार बार कहना
जल्दी आना-जल्दी आना
और कहना-क्या नया?
कब दावत? कब मिलवा रहे हो?
सुना है आपका कोई,
इंतज़ार करती थी
इसी भवन में!

तुम्हारी दिलचस्प बातों से
तुमसे, तुम्हारी अदाओं से
मैं तो यूँ ही, प्यार कर बैठा था
आँखे मूंदे, बिना सोचे, बिना समझे
और शायद तुम भी करती थी
बहुत हद तक.

पर चंद समय की दूरियों ने ही 
ऐसा क्या फासला बढ़ा दिया कि
अब तो तुम्हारा कोई ख़त, सन्देश
फोन भी नहीं आता,
यहाँ तक कि हिचकी भी नहीं!

तुम्हारे नाम की हिचकी का 
इंतज़ार करते करते 
मैं सुबह से शाम कर देता हूँ
मुझे देखते देखते ऱोज
डूब जाता है सूरज.

फिर चाँद निकल आता है
तो तुम्हे आसमान में ताकता हूँ
कि हो सकता है कहीं
तुम्हारे बदन की चांदनी उसमे समाहित हो
और मुझे नज़र आ जाए.

समय चक्र चलता रहता है
फिर अमावास आ जाती है
तुम न आओ, न सही
जब मेरी ज़िन्दगी की अमावास आए
तुम आना मत भूलना...