जीवन क्या है?
सोचता हूँ मैं
पूछता हूँ मैं
अपने आप से
ढूँढता हूँ किताबों में
मगर, नहीं मिलता कहीं
उत्तर
जो दे सके संतोष.
कोई बताता है जीवन को
बिना लगाम का पहिया
कोई पगडण्डी, कोई मझधार
और कोई बताता है, सिर्फ
चलने का नाम है जीवन.
पर मैं जब झांकता हूँ
अपने ही गिरेबाँ में
तो पाता हूँ
जीवन एक रंगमंच है
इसमें निभाता हूँ मैं
कई भूमिकाएं
दफ्तर में अलग
घर में अलग
समाज में अलग
और सपनो में भी अलग.
करता हूँ झूंठी तारीफ़ दूसरों की
झूंठी ही निंदा स्वयं की
ठहाका लगाकर हँसता हूँ
दूसरों के दुःख में
खुद के क्षणिक सुख में.
मेरा कोई साथी धावक जिसने
दौड़ना शुरू किया था मेरे साथ
अगर निकल जाताहै मुझसे आगे
तो मन ही मन नाखुश होता हूँ
दफ्तर में भी खैलता हूँ मैं
कई भूमिकाएं
काम का नाटक करता हूँ
जूनियर्स पर चिल्लाता हूँ
सीनियर्स की हाँ में हाँ मिलाता हूँ
दूसरों के काम का श्रेय खुद ले लेता हूँ
अपनी गलती दूसरों पर थोप देता हूँ.
झूंठा हंसता हूँ
झूंठा ही डांटता हूँ
झूंठा ही प्यार दिखाता हूँ
श्वेत वस्त्र पहन
झूंठी शालीनता दर्शाता हूँ.
कहीं नहीं दिखता मेरा असली चेहरा
उसे मैं वक्त और स्थिति के मुखौटे से ढँक लेता हूँ
मेरी इच्छाएं अनंत हैं,
मेरा अपनी वस्तुओं से नहीं भरता जी
दूसरों की भी हड़प लेना चाहता हूँ.
नहीं चाहते हुए भी करना पड़ता है यह सब
शायद संसार भी यही चाहता है
इसीलिये मैं नहीं मानता खुद को अपराधी
दोष दूसरों पर मढ़ने का हो चुका हूँ आदी.
अगर ऐसे झूंठ, छलावों और आडम्बरों
का ही नाम जीवन है
तो इससे तो भला,
कोई रंगमंच..!!!
सोचता हूँ मैं
पूछता हूँ मैं
अपने आप से
ढूँढता हूँ किताबों में
मगर, नहीं मिलता कहीं
उत्तर
जो दे सके संतोष.
कोई बताता है जीवन को
बिना लगाम का पहिया
कोई पगडण्डी, कोई मझधार
और कोई बताता है, सिर्फ
चलने का नाम है जीवन.
पर मैं जब झांकता हूँ
अपने ही गिरेबाँ में
तो पाता हूँ
जीवन एक रंगमंच है
इसमें निभाता हूँ मैं
कई भूमिकाएं
दफ्तर में अलग
घर में अलग
समाज में अलग
और सपनो में भी अलग.
करता हूँ झूंठी तारीफ़ दूसरों की
झूंठी ही निंदा स्वयं की
ठहाका लगाकर हँसता हूँ
दूसरों के दुःख में
खुद के क्षणिक सुख में.
मेरा कोई साथी धावक जिसने
दौड़ना शुरू किया था मेरे साथ
अगर निकल जाताहै मुझसे आगे
तो मन ही मन नाखुश होता हूँ
पर जुबां पर शब्द लाता हूँ....वाह!
दफ्तर में भी खैलता हूँ मैं
कई भूमिकाएं
काम का नाटक करता हूँ
जूनियर्स पर चिल्लाता हूँ
सीनियर्स की हाँ में हाँ मिलाता हूँ
दूसरों के काम का श्रेय खुद ले लेता हूँ
अपनी गलती दूसरों पर थोप देता हूँ.
झूंठा हंसता हूँ
झूंठा ही डांटता हूँ
झूंठा ही प्यार दिखाता हूँ
श्वेत वस्त्र पहन
झूंठी शालीनता दर्शाता हूँ.
कहीं नहीं दिखता मेरा असली चेहरा
उसे मैं वक्त और स्थिति के मुखौटे से ढँक लेता हूँ
मेरी इच्छाएं अनंत हैं,
मेरा अपनी वस्तुओं से नहीं भरता जी
दूसरों की भी हड़प लेना चाहता हूँ.
नहीं चाहते हुए भी करना पड़ता है यह सब
शायद संसार भी यही चाहता है
इसीलिये मैं नहीं मानता खुद को अपराधी
दोष दूसरों पर मढ़ने का हो चुका हूँ आदी.
अगर ऐसे झूंठ, छलावों और आडम्बरों
का ही नाम जीवन है
तो इससे तो भला,
कोई रंगमंच..!!!
नहीं चाहते हुए भी करना पड़ता है यह सब
ReplyDeleteशायद संसार भी यही चाहता है
इसीलिये मैं नहीं मानता खुद को अपराधी
दोष दूसरों पर मढ़ने का हो चुका हूँ आदी.
superb rachna .
ise vatvriksh ke liye bhejiye rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath
रचना में मनोभावों का अच्चा विश्लेषण किया है आपने!
ReplyDeleteयही जीवन है , बिलकुल सही चित्रित किया है आपने।
ReplyDeleteज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय ....
ReplyDeleteकभी हंसाये कभी ये रुलाये हाय .....
अच्छा है।
ReplyDeletebahur sundar bhav jindgi ko samajhna asan nahi hai
ReplyDeleteबिलकुल सही चित्रित किया है आपने। धन्यवाद|
ReplyDeleteसच में जीवन एक रंगमंच ही तो है..... हम कई भूमिकाएं करते रहते हैं जाने अनजाने..... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसच ,जीवन तो बस एक रंग मंच है !
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
आभार !
जीवन के रंग अनेक और रूप भी अनेक।और इसी अनेकता की वजह से हमारा रोल विभिन्न प्रकार का हो जाता है....और यह जीवन हमें रंगमंच लगता।
ReplyDeleteबहुत ही सीधी और सच्ची बात काही आपने कविता के माध्यम से। बधाई।
कहीं नहीं दिखता मेरा असली चेहरा
ReplyDeleteउसे मैं वक्त और स्थिति के मुखौटे से ढँक लेता हूँ
मेरी इच्छाएं अनंत हैं,
मेरा अपनी वस्तुओं से नहीं भरता जी
दूसरों की भी हड़प लेना चाहता हूँ......
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...हार्दिक बधाई।
Tasveer,
ReplyDeleteRangmanch hi hamari,aapki aur is manch se judne wale har saksh ki sachai darshati hui ek koshish jo saraahniya hai.........ati uttam:)
अच्छा है।
ReplyDeleteबहुत ही सीधी बात कही आपने
हार्दिक बधाई।
kisi ne kaha hai ..
ReplyDeleteZindgi, or sirf jiine ke liye ?
zindgi, itni to be_maqsad nahi?
...
aaj ki talkh haqiqat ko aapne shabd diye hai ..
कोई बताता है जीवन को
ReplyDeleteबिना लगाम का पहिया
कोई पगडण्डी, कोई मझधार
और कोई बताता है, सिर्फ
चलने का नाम है जीवन.
हर एक शब्द लाजवाब है. जीवन एक रंगमच के सिवा कुछ भी नहीं हर कोई अपनी-अपनी भूमिका निभा रहा है यहाँ... बहुत खूब.....
शर्मा जी--
ReplyDelete"बिना लगाम का पहिया" है यह ज़िन्दगी जो आपने वर्णित की है...विना कोई मकसद के---पर यह ज़िन्दगी नहीं..ज़िन्दगी ढोना है...इस पहिये पर सत्कर्मों की लगाम लगायेंगे तभी पहिया सही -सीधी-सहज़ राह पर चलेगा ..वही सफ़ल जिन्दगी कहलायेगी...
----जिन्दगी वही है जो किसी मकसद के हो और आप किसी भी ओढी हुई मज़बूरी से अपनी आत्मा के विरुद्ध कार्य न करें...
---रंगमन्च पर आपको सार्थक, सकारात्मक नाटक दिखाना है तभी प्रशंसा होती है...यूंही विना अर्थ के नकल करके दिखाने वाले नाटक की कोई नहीं प्रशंसा करता....
---
जीवन के रंगमंच का सही चित्रण कर दिया है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...आज की परिप्रेक्ष में .....पर मेरे ख़याल में जीवन एक मृत्यु है !
ReplyDeleteachhi lagi rachna aapki...........
ReplyDeletejivan ke bare me kisi ke bhi diye uttar kaam nahi aate ....bahut sunder.
जीवन एक रंगमंच है
ReplyDeleteR E A L L Y
जीवन रंगमंच तो है उसकी बेबाक समीक्षा करके आपने उस सच को उजागर कर दिया.
ReplyDeleteJeevan ke rangmanch par yun hi adakari karte rahiye....sundar rachana...badhai
ReplyDeletehmmmm.....and the best thing is that we are both, the artist and the audiance.
ReplyDeleteअगर ऐसे झूठ, छलावों और आडम्बरों
ReplyDeleteका ही नाम जीवन है
तो इससे तो भला,
कोई रंगमंच
जीवन रंगमंच ही तो है,
हम जीवन भर अभिनय के सिवा करते ही क्या हैं?
bahut acchi koshish.....
ReplyDeletekuch saccha aur accha hai...tkcr n start writting...
bahut sarthak , sateek jevan-chitran.
ReplyDeleteबेहतरीन भावपूर्ण रचना के लिए बधाई।
ReplyDeleteयह नवसंवत्सर आपके जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्रदान करे ।