(चार महीने बाद बमुश्किल कलम से कुछ उतरा। पेश है पत्थर के कुछ ज़ज्बात जो हम कभी समझने की कोशिश नहीं करते।।।)
मैं पत्थर
मैं पत्थर
शायद बहुत कठोर
क्यूंकि तुम इंसान
ऐसा समझते हो।
प्रहार करते हो
अपने स्वार्थ के लिए
तराशने के बहाने
काया छिन्न भिन्न कर देते हो
भगवान् बनाकर पूजते भी हो तो
अपने लिए।
और मैं तो तुम्हारे लिए ही
बांधों में चुना जाता हूँ
दीवारों में चुना जाता हूँ
कब्र बनता हूँ
स्मारक बनता हूँ
रास्ते में फेंक देते हो
तो ज़माने की ठोकरें सहता हूँ
फिर भी बद दुआएं ही पाता हूँ।
तुम्हारे जन्म से लेकर
मृत्यु तक हर अवस्था में
तुम्हारे इर्द गिर्द सहारा देता हूँ।
पर, फिर भी तुम मुझे
हेय दृष्टि से देखते हो
मेरी तोहीन करते हो
किसी को यह कहकर कि,
अरे! पत्थर मत बन।
इंसानों! कभी तो समझो
मेरे भी जज़्बात हैं
मुझे भी मोहब्बत है
अपने आस पास की
आबो हवा से, लोगों से
पानी से, पेड़ों से, जीवों से।
मुझे जब चाहे तोड़-फोड़कर
यहाँ से वहाँ मत फेंको
मुझे भी ज़िंदा रहने दो
मेरी मोहब्बत के साथ।।।
मैं पत्थर
मैं पत्थर
शायद बहुत कठोर
क्यूंकि तुम इंसान
ऐसा समझते हो।
प्रहार करते हो
अपने स्वार्थ के लिए
तराशने के बहाने
काया छिन्न भिन्न कर देते हो
भगवान् बनाकर पूजते भी हो तो
अपने लिए।
और मैं तो तुम्हारे लिए ही
बांधों में चुना जाता हूँ
दीवारों में चुना जाता हूँ
कब्र बनता हूँ
स्मारक बनता हूँ
रास्ते में फेंक देते हो
तो ज़माने की ठोकरें सहता हूँ
फिर भी बद दुआएं ही पाता हूँ।
तुम्हारे जन्म से लेकर
मृत्यु तक हर अवस्था में
तुम्हारे इर्द गिर्द सहारा देता हूँ।
पर, फिर भी तुम मुझे
हेय दृष्टि से देखते हो
मेरी तोहीन करते हो
किसी को यह कहकर कि,
अरे! पत्थर मत बन।
इंसानों! कभी तो समझो
मेरे भी जज़्बात हैं
मुझे भी मोहब्बत है
अपने आस पास की
आबो हवा से, लोगों से
पानी से, पेड़ों से, जीवों से।
मुझे जब चाहे तोड़-फोड़कर
यहाँ से वहाँ मत फेंको
मुझे भी ज़िंदा रहने दो
मेरी मोहब्बत के साथ।।।
मन को न बनने दें पत्थर, कितने तुम पर फेंके जाये।
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♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
इंसानों! कभी तो समझो
मेरे भी जज़्बात हैं
मुझे भी मोहब्बत है
अपने आस पास की
आबो हवा से, लोगों से
पानी से, पेड़ों से, जीवों से।
मुझे जब चाहे तोड़-फोड़कर
यहाँ से वहाँ मत फेंको
मुझे भी ज़िंदा रहने दो
मेरी मोहब्बत के साथ
वाह ! वाऽह !
क्या बात है !
प्रिय भाई C S देवेन्द्र जी
पत्थर के मन की ख़ूब कही आपने !
:)
बहुत समय बाद नई कविता लिखी आपने ,
लेकिन अच्छी कविता लिखी ...
हार्दिक मंगलकामनाएं !
मकर संक्रांति की अग्रिम शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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